दिनदहाड़े लूट के लिए कुख्यात दूरदराज के इलाकों में घर-घर बैंकिंग सेवाएं पहुंचाने की जिम्मेदारी गायत्री देवी (45) के पास है। विशेष यह कि इन डरावने इलाकों में जाते समय उनके पास अपनी शिक्षा और दृढ़ संकल्प के अलावा कोई अन्य किसी किस्म का हथियार भी नहीं होता। असंभव लगता है न? लेकिन, इस दिलेर समाजशास्त्र में पोस्ट ग्रेजुएट महिला के लिए बिल्कुल नहीं!
उच्च अपराध दर वाले इस क्षेत्र में चाकू की नोक पर लोगों को लूटने वाले मोटरसाइकिल गिरोह के आतंक के बावजूद गायत्री को कोई डर नहीं लगता।
वह कहती हैं, उनके पति जय गोविंद नाग राशन की दुकान चलाते हैं। उनके दो बेटे हैं। दोनों ही सखी मंडल (महिला स्वयं सहायता समूह) से ऋण लेकर अपनी उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।
झारखण्ड राज्य ग्रामीण बैंक की व्यवसाय सहयोग मित्र गायत्री खूंटी जिले के रानिया प्रखंड के सैकड़ों ग्रामीणों के लिए तारणहार साबित हुई हैं।
कोई और स्त्री होती तो उसके लिए इतना सब कुछ संतुष्ट जीवन व्यतीत करने के लिए काफी होता, लेकिन गायत्री के लिए नहीं। उन्होंने कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान भी अपना कर्तव्य निभाने में संकोच नहीं किया और अपने वित्तीय लेनदेन को सुचारू रूप से संचालित किया।
गायत्री देवी का काम आधार को बैंक खातों से जोडऩा, वरिष्ठ नागरिकों को नकद में पेंशन राशि का भुगतान करना और यहां तक कि छात्रों को छात्रवृत्ति राशि जैसी आवश्यक सेवाएं प्रदान करना है। उनके दैनिक वित्तीय लेनदेन की कुल जमा आमतौर पर एक लाख रुपये या इससे भी अधिक होती है, लेकिन वह उच्च अपराध दर वाले इस क्षेत्र में बेखौफ होकर अपनी सेवाएं अंजाम देती हैं। चाकू की नोक पर लोगों को लूटने वाले मोटरसाइकिल गिरोह के आतंक के बावजूद गायत्री को कोई डर नहीं लगता।
अपने बैंक से जुड़ी जिम्मेदारियों को निभाते हुए गायत्री ने भी लॉकडाउन के दौरान कोविड-19 संक्रमण को रोकने के लिए अपना योगदान दिया। वह रोज ही अन्य क्षेत्रों से आने वाले लोगों पर नजर रखतीं, सामुदायिक रसोई कार्यक्रम में सहयोग करतीं और क्वॉरंटीन में रहने वाले हजारों लोगों को भोजन मुहैया कराने में मदद करतीं।
जब गायत्री देवी से पूछा कि वह कैसे और क्यों इतनी मेहनत के साथ-साथ सामाजिक कार्यों में योगदान देती हैं, तो उनका उत्तर बड़ा ही सरल आता है- मैं हमेशा समाज की सेवा करना चाहती थी। जिन लोगों की मैं सेवा करती हूं, उनसे मुझे जो प्यार मिल रहा है, वही मेरा सबसे बड़ा इनाम है।