कभी-कभी केवल जीवित रहना भी बहादुरी का काम हो सकता है। देशभर में ऐसी लाखों महिलाएं होती हैं जिनके पति का देहांत हो जाता है अथवा उन्हें उनके जीवनसाथी परित्याग कर देते हैं। इस तरह सहारा छिन जाने के कारण उनमें से अधिकांश गरीबी के गर्त में चली जाती हैं, लेकिन कभी-कभार हम इन्हीं महिलाओं के बीच से उभरे आत्मनिर्भरता के ज्वलंत उदाहरण के बारे में भी सुनते हैं। ऐसी ही एक महिला है मगदली होरो।
होरो ने अपना रास्ता खुद बनाया और राज्य की महिलाओं में आत्मविश्वास भर दिया है। वह कहती हैं, झारखंडी महिलाओं के उद्यमिता कौशल का कोई मुकाबला नहीं है।
रांची जिले के नामकोम ब्लॉक की रहने वाली होरो के पति का देहांत 2003 में हो गया था। उस समय उनकी उम्र केवल 27 वर्ष थी। वह अपनी तीन साल और नौ महीने की दो बेटियों के साथ अकेली रह गईं। उनके पति दिहाड़ी मजदूर थे, लेकिन परिवार का सब कुछ थे। पति के गुजरने के बाद अकेले ही दो बेटियों का पालन-पोषण करना मुश्किल काम था, लेकिन होरो ने हार नहीं मानी और तमाम झंझावातों के सामने डटी रहीं। जिंदगी के थपेड़ों के सामने लड़ते-लड़ते समय बीतता गया। अब 45 साल की हो गई हैं।
मैट्रिक पास होरो 2011 में एक स्वयं सहायता समूह में शामिल हुईं और घर की आमदनी बढ़ाने के लिए फल और सब्जियां उगाने का प्रशिक्षण लिया। उन्होंने घर के पास किचन गार्डन में फल-सब्जियां उगाकर बेचना शुरू किया तो उनकी आर्थिक स्थिति संभलती गई।
कभी रोजी-रोटी के संकट से जूझ रहीं मगदली होरो अब राज्य भर में घूम-घूम कर महिलाओं को समझाती, उन्हें किचन गार्डन के लिए प्रेरित करती हैं कि उपलब्ध सीमित संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग करके किस प्रकार अपनी आमदनी बढ़ाई जा सकती है।
कभी रोजी-रोटी के संकट से जूझ रहीं मगदली होरो अब राज्य भर में घूम-घूम कर महिलाओं को समझाती, उन्हें प्रेरित करती हैं कि उपलब्ध सीमित संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग करके किस प्रकार अपनी आमदनी बढ़ाई जा सकती है और विशेष रूप से स्वयं सहायता समूहों का सहारा लेकर वे उद्यमी भी बन सकती हैं।
अपने पैरों पर खड़ी होकर आज वह बहुत खुश हैं। अपनी कमाई से घर तो चला ही रही हैं, बेटियों को बेहतर शिक्षा भी दिला रही हैं। वह बताती हैं कि उनकी बड़ी बेटी विशाखापत्तनम के एक प्रतिष्ठित नर्सिंग स्कूल में पढ़ रही हैं और छोटी बेटी मैट्रिक की परीक्षा की तैयारी कर रही है।
होरो ने अपना रास्ता खुद बनाया और राज्य की महिलाओं में आत्मविश्वास भर दिया है। वह चुटकी लेते हुए कहती हैं, झारखंडी महिलाओं के उद्यमिता कौशल का कोई मुकाबला नहीं है।
उनकी बात सही लगती है, क्योंकि उन्होंने अपनी इस उक्ति को साबित कर दिखाया है। औरों को आत्मनिर्भरता का रास्ता भी दिखाया है।