सीमांत जिले पुंछ के एक छोटे से कश्मीरी गांव परत की रहने वाली लडक़ी पढऩे के लिए पांच किलोमीटर पैदल आती-जाती थी। यही नहीं, उनकी शादी भी आठवीं की पढ़ाई पूरी होने से पहले ही कर दी गई।
डॉ. शमीम अख्तर ने वर्ष 2002 में जूलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया का युवा वैज्ञानिक पुरस्कार जीता। वर्ष 2007 में डॉ. डीएस चौहान मेडल, वर्ष 2009 में माधवी श्याम पदक और 2017 में पर्यावरण विज्ञान पदक अपने नाम किया।
इसके बावजूद दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण आज वह गवर्नमेंट डिग्री कॉलेज, राजौरी (जम्मू-कश्मीर) में प्राणी विज्ञान विभाग की प्रमुख हैं।
गुर्जर आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली डॉ. शमीम अख्तर ने अपने पसंदीदा विषय पर किताब लिखी है। उनके लेख कई पत्रिकाओं में प्रकाशित होते हैं। खास उपलब्धि के तौर पर उनके खाते में लगभग 80 पेपर हैं।
उन्होंने 2002 में जूलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया का यंग साइंटिस्ट अवार्ड जीता। इसके बाद 2007 में डॉ. डीएस चौहान मेडल, 2009 में माधवी श्याम मेडल और 2017 में इनविरोन्मेंटल साइंस मेडल अपने नाम किया।
डॉ. अख्तर को आधा दर्जन से अधिक फेलोशिप मिली हैं। वर्तमान में वह भारतीय अनुसंधान संचार सलाहकार बोर्ड की सदस्य और जूलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया में संपादकीय सचिव के रूप में कार्यरत हैं।
आज भले उनका अकादमिक करियर शानदार नजर आता हो, लेकिन उनका शुरुआती जीवन बहुत संघर्षों से गुजरा है। डॉ. अख्तर पुंछ की मेंढर तहसील के परत गांव की रहने वाली हैं। उनकी प्राथमिक शिक्षा बाग का स्कूल में हुई, जिसका परिसर बड़ी संख्या में चिनार के पेड़ों के लिए पूरे इलाके में मशहूर और आकर्षण का केंद्र है। बाद में उन्होंने हर्नी के सरकारी स्कूल में दाखिला ले लिया और वहां से आठवीं तक की पढ़ाई की। हालांकि, 8वीं की वार्षिक परीक्षा से पहले ही उनकी शादी एक पुलिसकर्मी से कर दी गई।
डॉ. अख्तर ने अपनी उच्च शिक्षा मेंढर स्थित माध्यमिक विद्यालय से पूरी की, जहां उनके पति की पोस्टिंग थी। डॉ. अख्तर बताती हैं कि कम उम्र में शादी होने के बावजूद वह अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखना चाहती थीं। वह कहती हैं कि सबसे पहले अपने माता-पिता का धन्यवाद करना चाहती हैं, जो उनके फैसलों के साथ हमेशा खड़े रहे। उसके बाद मेरे पति और उनके परिवार ने भी मेरा पूरा सहयोग किया और मेरा सपना साकार करने में हर कदम पर मदद की।
डॉ. अख्तर ने शादी के बाद ही हाई स्कूल, ग्रेजुएशन, पोस्ट ग्रेजुएशन और डॉक्टरेट की पढ़ाई की। वह याद करते हुए कहती हैं कि मैंने अपना एमए, एमफिल और पीएचडी डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, आगरा से किया।
लगभग पांच वर्षों तक उन्होंने विभिन्न स्कूलों में संविदा शिक्षक के रूप में कार्य किया। अंत में साल 2007 में उन्हें अल्मा मेटर गवर्नमेंट डिग्री कॉलेज, राजौरी में संकाय के रूप में शामिल किया गया। हल्की मुस्कुराहट के साथ डॉ. अख्तर कहती हैं- मैं हर रोज अपने छात्रों को कुछ अलग पढ़ाने और खुद भी नया सीखने की पूरी कोशिश करती हूं।