रांची
रांची की हृदय स्थली में स्थित बिरसा मुंडा संग्रहालय एवं स्मृति पार्क ब्रिटिश साम्राज्य काल से लेकर झारखंड की विविधता और पूर्ण जनजातीय संस्कृति का इतिहास बयां करता है।
रांची की पुरानी जेल में बनाया गया यह संग्रहालय ‘धरती आबा’ बिरसा मुंडा के संघर्ष की गाथा को समाहित किए हुए है, जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध आजादी का उलगुलान किया था। १५ नवंबर को झारखंड स्थापना दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसका ऑनलाइन उद्घाटन करेंगे।
यह जेल जो कि अब संग्रहालय बन चुका है इसमें भगवान बिरसा मुंडा ने अपने जीवन के अंतिम दिन बिताए थे। उन्होंने 9 जून 1900 को इस जेल में अंतिम सांस ली थी। इसके दरो दीवार पर धरती आबा के संघर्ष की गाथा जज्ब है।
142 करोड़ के इस प्रोजेक्ट में झारखंड सरकार ने 117 करोड़ और केंद्र ने 25 करोड़ रुपए का अनुदान दिया है।
इस संग्रहालय को अंडमान निकोबार द्वीप समूह के सेल्यूलर जेल की तर्ज पर विकसित किया गया है। संग्रहालय परिसर के अंदर प्रवेश करते ही भगवान बिरसा मुंडा की आदम कद प्रतिमा मूर्तिकला का खूबसूरत उदाहरण प्रस्तुत करती है।
जिस कमरे में भगवान बिरसा मुंडा को कैद रखा गया था, वहां झारखंड के विभिन्न जिलों से लाई गई पवित्र मिट्टी कलशों में रखी हुई है।
इसके अलावा यहां की दीवारों पर ब्रिटिश साम्राज्य और भगवान बिरसा मुंडा के उलगुलान से संबंधित ऐतिहासिक तथ्य देखे जा सकते हैं। संग्रहालय के भीतर जनजातीय संस्कृति को मूर्तिकला के माध्यम से दिखाने की कोशिश की गई है, जिसमें मेहनतकश आदिवासी समाज की खेती गृहस्थी, लोहा बनाने जैसी दैनिक दिनचर्या को की कलात्मक अभिव्यक्ति दिखाई पड़ती है।
साथ ही झारखंड के जनजातीय महापुरुषों सिद्धू कानू, तेलंगा खड़िया, गया मुंडा, जतरा टाना भगत, दिवा-किसुन, नीलांबर पीतांबर की आदम कद मूर्तियां परिसर में स्थापित की गई हैं। संग्रहालय के पार्क में पत्थलगड़ी की परंपरा को भी दर्शाया गया है।