तनीषा फानबुह भले ही अभी छोटी हों, लेकिन वह अपने काम में निपुण हैं। केवल 28 साल की तनीषा शिलांग में आर्ट ऑफ़ केक के नाम से अपनी बेकरी चलाती हैं। इस बेकरी में वह छह महिलाओं को रोजगार दे रही हैं। उन्हें उम्मीद है कि अगले साल के अंत तक उनके यहां काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या 15 तक पहुंच जाएगी। वह जल्द ही अपना व्यवसाय पंजीकृत करने की योजना भी बना रही हैं।
केवल 28 साल की तनीषा शिलांग में आर्ट ऑफ़ केक के नाम से अपनी बेकरी चलाती हैं। इस बेकरी में वह छह महिलाओं को रोजगार दे रही हैं।
कुछ दिन पहले की ही बात है जब तनीषा एक स्कूल की कैंटीन में खान-पान की केवल कुछ वस्तुएं ही उपलब्ध कराती थीं। इस स्कूल में उनकी मां शिक्षिका थीं। व्यावसायिक प्रशिक्षण के नाम पर तनीषा ने बारहवीं कक्षा पास करने के बाद कम अवधि का एक बेकिंग कोर्स किया था। वह बताती हैं कि उनके पास न तो सामान रखने के लिए स्टोर था और न ही आधुनिक बेकिंग उपकरण थे, जो कि इस व्यवसाय में बहुत जरूरी होते हैं। कारोबार को आगे बढ़ाने के लिए इस खासी आदिवासी महिला के लिए यह एक बड़ी चुनौती थी।
हालांकि, जैसे-जैसे ऑर्डर की संख्या बढ़ती गई, तनीषा एक के बाद एक बाधाएं पार करती गईं। अब उन्होंने अपने घर पर ही छोटा कैफेटेरिया स्थापित कर लिया और किचन के बरतनों पर निवेश किया।
तनीषा का कहना है कि उन्होंने इन परिवारों के बारे में अपने उन दोस्तों से जानकारी जुटाई जो स्थानीय ट्रेड यूनियनों आदि से जुड़े रहते हैं। इस पहल को आगे बढ़ाने के लिए वह पूरी तरह अपनी बचत और नियमित कैटरिंग ऑर्डर से होने वाली आमदनी पर ही निर्भर हैं। वह कहती हैं कि उन्होंने कम उम्र में ही कमखर्ची और सामुदायिक सेवा का महत्व समझ लिया था। यह निश्चित रूप से उनके काम में दिखाई पड़ता है।
महामारी के दौरान तनीषा शिलांग में दिहाड़ी मजदूरों के लगभग 300 परिवारों को लगातार मुफ्त टिफिन मुहैया कराती रही। इनमें सब्जी, फल और मांस विक्रेता शामिल थे, जो लॉकडाउन में कामधंधे ठप होने से बेरोजगार हो गए थे। चुनौती बड़ी थी, इसलिए उन्होंने अपनी सहायता के लिए 10 और महिलाओं को काम करने के लिए नियुक्त किया।