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Home » द इंडियन ट्राइबल / हिंदी » द इंडियन ट्राइबल / स्वास्थ्य » लद्दाख के जड़ी-बूटी वाले डॉक्टर

लद्दाख के जड़ी-बूटी वाले डॉक्टर

लद्दाख के ऊंचाई वाले पहाड़ी क्षेत्र में स्थित एक छोटे से गांव में रिग्जेन स्मनला नाम के डॉक्टर देसी जड़ी-बूटियों से इलाज की प्रथा को जीवित रखे हुए हैं। सुदीप्तो पाती ने उनसे मुलाकात की और दुरूह क्षेत्र में उनके संघर्ष और हर्बल दवाओं की महत्ता के बारे में जाना।

October 26, 2021
Herbs Man of Ladakh

तिब्बत से लगी सीमा के पास स्थित लिकिर गांव यूं तो अपने प्राचीन बौद्ध मठ के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन एक हजार से अधिक आबादी वाले इस गांव में कुछ और भी ऐसा खास है जिससे इसकी पहचान आसपास के पहाड़ी गांवों में सबसे अलग है। लिकिर में 78 वर्षीय रिग्जेन स्मनला रहते हैं, जो कुछ अन्य साथी डॉक्टरों की तरह इस पहाड़ी क्षेत्र के गांवों में पारंपरिक जड़ी-बूटी से इलाज की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।

लिकिर ही नहीं, अल्ची और सास्पोल समेत आसपास के अन्य कई गांवों में जब कोई बीमार पड़ता है अथवा किसी को चिकित्सा सहायता की जरूरत होती है तो वे बिना देरी किए स्मनला के मामूली से घर में ही बने क्लीनिक में आना पसंद करते हैं।

Ladakh Tribal Herbs - theindiantribal

स्मनला बताते हैं कि हालांकि लिकिर गांव से 54 किलोमीटर दूर लद्दाख के सबसे बड़े शहर लेह तक जाने के लिए बहुत अच्छी सडक़ है और शहर में कुछ अस्पताल भी हैं, लेकिन आसपास के गांवों में रहने वाले ज्यादातर लोग विशेष रूप से बुजुर्ग इलाज के लिए उन्हीं के पास आते हैं।

उनके क्लीनिक में छोटे जार दीवार में बनी अलमारियों में बड़े करीने से सजे हैं। ठीक उसी तरह जैसे किसी रसोई में मसाले रखे हों। इन तमाम जारों में औषधीय पौधों से निकाला गया अर्क संभाल कर रखा गया है।

Ladakh Tribal Herbs - The Indian Tribal

उनके क्लीनिक में छोटे जार दीवार में बनी अलमारियों में बड़े करीने से सजे हैं। ठीक उसी तरह जैसे किसी रसोई में मसाले रखे हों। इन तमाम जारों में औषधीय पौधों से निकाला गया अर्क संभाल कर रखा गया है।

औषधीय पौधे पहाड़ों के ऊपरी क्षेत्रों से एकत्र किए जाते हैं। इनमें बहुचर्चित रोडियोला रसिया नाम का एक पौधा भी है, जो तनाव, थकान और अवसाद दूर करने में सहायता करता है। इस तरह के औषधीय गुणों से भरपूर कई अन्य फूल और पौधे हिमालय की ऊंचाई पर स्थित जंगलों में पाए जाते हैं।

पीढिय़ों से चल रहा देसी क्लीनिक

स्मनला का क्लीनिक पीढिय़ों से चला आ रहा है। उनके पिता, दादा और परदादा भी देसी जड़ी-बूटी से इलाज करने वाले डॉक्टर थे। उन्होंने अपना जीवन तिब्बती पारंपरिक चिकित्सा पद्धति से इलाज के लिए समर्पित कर दिया। स्मनला का कहना है कि वह बस अपने बुजुर्गों के नक्शेकदम पर चल रहे हैं और उनके बेटे ने भी लेह में अपना क्लीनिक खोल लिया है जो इसी देसी चिकित्सा पद्धति को आगे बढ़ा रहा है।

अपनी जवानी के दिनों में और यहां तक कि पिछले कुछ साल पहले तक भी स्मनला औषधीय पौधों और फूलों की तलाश में लद्दाख की घाटियों की खाक छानते थे, लेकिन अब उनकी उम्र ज्यादा चलने-फिरने की अनुमति नहीं देती है।

Ladakh Tribal Herbs - theindiantribal

स्मनला बताते हैं कि कोई दो साल पहले वह आखिरी बार औषधीय पौधों की तलाश में पहाड़ों के ऊपर गए थे। अब जड़ी-बूटी एकत्र करने का काम मेरा बेटा और बहू करते हैं। वे दोनों सुरू और नुब्रा की घाटियों में जाते हैं और वहां से वे मेरे और अपने क्लीनिक के लिए जड़ी-बूटियां एकत्र करके लाते हैं। कारगिल जिले में स्थित सुरू और नुब्रा स्मनला के गांव से लगभग 170 किमी दूर हैं।

जब उनसे अपनी फीस के बारे में पूछा गया तो मुस्कुराते हुए कहने लगे- यह मैं अपने मरीजों के ऊपर छोड़ देता हूं। कह देता हूं कि उस समय वे जितना दे सकने की स्थिति में हों, दे दें। यह पेशा कभी भी लाभ कमाने के लिए नहीं रहा। यह हमेशा अच्छाई के जरिए उपचार को महत्व देता रहा है।

नई पीढ़ी की बदली सोच

समानला के मरीज पहले विभिन्न आयु वर्ग के थे, यानी लिकिर और उसके आसपास के गांवों में रहने वाले बच्चे, जवान और बूढ़े सभी उनके पास इलाज के लिए आते थे। हालांकि, अब समय बदल गया है, और आज उसके ग्राहक आमतौर पर 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोग ही हैं।

युवा पीढ़ी पश्चिमी चिकित्सा पद्धति से इलाज पर अधिक भरोसा करती है। लद्दाख के सबसे बड़े शहरों लेह और कारगिल में आधुनिक चिकित्सा या अंग्रेजी दवाओं से इलाज के लिए बड़े अस्पताल खड़े हो गए हैं। हालांकि पुराने लोग आज भी पारंपरिक तरीके से इलाज कराने में अधिक सहज होते हैं। इन बुजुर्ग लोगों में जो आसानी से शहर आ जा सकते हैं, वे भी देसी जड़ी-बूटियों पर ही अधिक भरोसा करते हैं।

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10.45 crore
The Total population of Scheduled Tribes in India as per Census 2011
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The Indian Tribal is India’s first bilingual (English & Hindi) digital journalistic venture dedicated exclusively to the Scheduled Tribes. The ambitious, game-changer initiative is brought to you by Madtri Ventures Pvt Ltd (www.madtri.com). From the North East to Gujarat, from Kerala to Jammu and Kashmir — our seasoned journalists bring to the fore life stories from the backyards of the tribal, indigenous communities comprising 10.45 crore members and constituting 8.6 percent of India’s population as per Census 2011. Unsung Adivasi achievers, their lip-smacking cuisines, ancient medicinal systems, centuries-old unique games and sports, ageless arts and crafts, timeless music and traditional musical instruments, we cover the Scheduled Tribes community like never-before, of course, without losing sight of the ailments, shortcomings and negatives like domestic abuse, alcoholism and malnourishment among others plaguing them. Know the unknown, lesser-known tribal life as we bring reader-engaging stories of Adivasis of India.

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