गरीबी, भूख और नागरिक सुविधाओं की कमी किसी भी व्यक्ति के लक्ष्य प्राप्त करने में सबसे बड़ी बाधाएं बनकर उभरती हैं, लेकिन जिद्दी योद्धा के सामने ये सब बौने साबित होते हैं और वे अड़चनों को पार कर अपनी मंजिल तक पहुंच जाते हैं।
ओडिशा के एक मजदूर-किसान की बेटी सुमित्रा मुंडा के बारे में यह बात बिल्कुल सटीक बैठती है। सुमित्रा के अंदर वुशु के प्रति जुनून इस कदर भरा है कि कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि के बावजूद आठ साल से उसने हार नहीं मानी। कोच को उनमें जोश की एक चिंगारी दिखाई देती है, जो सुमित्रा को अंतरराष्ट्रीय स्तर की चैंपियनशिप में चमकने का मौका दे सकती है।
यह 15 वर्ष की लडक़ी अपने लक्ष्य को पाने के लिए बहुत व्याकुल दिखती है। सुमित्रा 2016 से 2021 तक झारखंड, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और जम्मू-कश्मीर में आयोजित राष्ट्रीय सब-जूनियर वुशु चैंपियनशिप स्पर्धाओं में अपने प्रदर्शन से देश भर में वाहवाही बटोर चुकी हैं।
ट्रैक रिकॉर्ड
सुमित्रा के अंदर वुशु के लिए उस समय जुनून पैदा हुआ जब वह गांव के सरकारी प्राइमरी स्कूल में कक्षा दो में पढ़ती थीं। वह स्कूल के खेल मैदान में अभ्यास कर रहे लडक़ों को देखकर बहुत प्रभावित हुईं। उनकी तकनीक, अनुशासन और ताकत ने उन्हें भी कुछ कर गुजरने के जज्बे से भर दिया और वह भी उन सभी का अनुकरण करने लगी।
उसी दौरान वुशु के राष्ट्रीय कोच पंकज कुमार महंत की नजर सुमित्रा पर पड़ी। उस समय महंत ओडिशा में अनाथों और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के बच्चों के लिए एक स्कूल में प्रशिक्षक थे।
लडक़ों को प्रशिक्षित करने के लिए महंत बारबिल शहर से 25 किमी दूर चलकर जाते थे। महंत इस युवा लडक़ी की दृढ़ता से बहुत अधिक प्रभावित हुए। वह सोचते थे कि यदि इस हीरे को तराशा जाए तो ये विश्व स्तर पर चमक बिखेर सकता है।
सुमित्रा की निगाह अपने लक्ष्य पर है। जिस उम्र में ज्यादातर लड़कियां बॉयफ्रेंड के बारे में सोचती हैं, सुमित्रा ने शादी न करने का मन बना लिया है। वह दृढ़ता से कहती हैं- मैं कभी शादी नहीं करूंगी। मैं विचलित हुए बिना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वुशु में जीतना चाहती हूं और विजयी पोडियम पर चढऩा चाहती हूं।
महंत बताते हैं कि कैसे मार्शल आर्ट के कठोरता के पैमाने पर सुमित्रा खरी उतरीं। वुशु की जटिल तकनीकी बारीकियों के अनुरूप उनकी क्षमता और चपलता, धैर्य और दृढ़ता से संतुष्ट होने के बाद ही मैंने उन्हें 2015 में प्रशिक्षण देने का फैसला किया।
सुमित्रा का गांव 2019 में उस समय सुर्खियों में आया जब रूस के मॉस्को में आयोजित वुशु स्टार्स चैंपियनशिप में यहां की लडक़ी मंजू मुंडा ने स्वर्ण पदक जीता। महंत और तीन अन्य लोगों द्वारा प्रशिक्षित मंजू भारतीय टीम में ओडिशा की एकमात्र खिलाड़ी थीं।
अंतरराष्ट्रीय चैंपियन बनने का संकल्प व्यक्त करते हुए दसवीं कक्षा में पढऩे वाली सुमित्रा कहती हैं कि वह मंजू मुंडा (दाएं) की तरह बनना चाहती हैं
हालांकि, इस युवा सितारे का प्रशिक्षण आसान नहीं रहा। मुश्किलों से भरे इस सफर में कई बार ऐसा लगता था कि सुरंग के अंत में कोई रोशनी नहीं है। आगे कोई रास्ता नहीं है।
संसाधनों की कमी
क्योंझर जिले के जोडा प्रखंड के सियालिजोडा गांव में सुमित्रा का सात लोगों का परिवार है। मजदूरी करने वाले डंका मुंडा और उनकी पत्नी बंगी अब बीमारी से जूझ रहे हैं। घर का खर्च दो बड़े भाई जुकरमुनि (35) और मधुसूदन (20) की कमाई से चलता है। सुमित्रा की सबसे बड़ी बहन अभी भी अविवाहित है। घर खर्च के लिए वह भी स्थानीय शराब, हंडिया बेचकर कुछ पैसा कमा लेती हैं। उनका भाई मजदूरी करता है।
सुमित्रा कहती हैं कि उनकी मां और पिता बहुत कम ही चल-फिर सकते हैं। इलाज के बाद भी उनकी हालत में सुधार नहीं हुआ। उनका कुपोषण खराब स्वास्थ्य का एक संभावित कारण है, लेकिन परिवार अभी भी दो वक्त के भोजन के लिए संघर्ष कर रहा है।
जीवन के कड़े संघर्ष और झंझावातों के बावजूद सुमित्रा खेल के प्रति अडिग हैं। वुशु के प्रति उनका प्यार और उनकी वास्तविक प्रतिभा उन्हें बहुत आगे लेकर जाएगी।
इस साल इस आदिवासी किशोरी ने सब-जूनियर वुशु चैंपियनशिप में रजत पदक जीता है। उन्होंने 2019 और 2018 में भी राष्ट्रीय स्तर पर सिल्वर पदक हासिल किया। वर्ष 2016 में उन्हें गोल्ड मेडल मिला था। सुमित्रा बाद में अपना विचार बदल सकती हैं, लेकिन फिलहाल यह चैंपियन अपनी परिस्थितियों और भाग्य को बदलने में जुटी है और उनकी लगन कहती है कि संभवत: वह कामयाब हों।