न्यायाधीश ने 1985 के एक मंत्रालयी परिपत्र का हवाला देते हुए यह फैसला सुनाया था कि आदिवासी केवल अपने गृह राज्य में ही आरक्षण के हकदार हैं।
महाराष्ट्र सरकार द्वारा संचालित कॉलेज ने आंध्र प्रदेश के प्रवासी मारी चंद्र शेखर राव को दाखिला तो दे दिया, लेकिन उन्हें आरक्षण का लाभ देने से इनकार कर दिया, क्योंकि गौड़ा जाति महाराष्ट्र में मान्यता प्राप्त एसटी सूची में शामिल नहीं थी, जैसा कि यह आंध्र प्रदेश में थी। चंद्र शेखर ने कॉलेज के इस कदम के खिलाफ मुम्बई में अदालत का दरवाजा खटखटाया।
वर्ष 1990 में सेठ जीएस मेडिकल कॉलेज के डीन के खिलाफ शेखर की याचिका मुख्य न्यायाधीश सब्यसाची मुखर्जी के पास पहुंची। न्यायाधीश ने 1985 के गृह मंत्रालय के एक परिपत्र का हवाला देते हुए निर्णय दिया कि राव केवल अपने गृह राज्य में आरक्षण के हकदार हैं। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि हमें न्याय करना चाहिए। राव ने अपनी पढ़ाई में प्रगति की है, जो रुकनी नहीं चाहिए।
न्यायाधीश ने याचिका को खारिज कर दिया, लेकिन अधिकारियों को याचिकाकर्ता की पढ़ाई जारी रखने या रोकने के बारे में उचित कार्रवाई करने का निर्णय लेने की छूट दे दी। राव की पढ़ाई बंद हो गई या अधिकारियों ने सहृदयता दिखाते हुए उनकी पढ़ाई जारी रखने का फैसला किया, कुछ ज्ञात नहीं।