क्योंझर
जिले के हरिचंदनपुर ब्लॉक के अंतर्गत गांव बालनिपासी के आदिवासियों ने पहले कभी ऐसा प्रयोग नहीं किया था। वे परंपरागत रूप से सब्जी की खेती कर रहे थे, लेकिन जब उन्हें फलों की खेती करने की सलाह दी गई तो वे झिझकते हुए तैयार हो गए। हिचकिचाहट का कारण उनका यह डर था कि उन्होंने पहले कभी फलों की खेती नहीं की थी और यदि दांव उल्टा पड़ा यानी फसल सही तरीके से फल नहीं दे पाई तो उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। हालांकि, एकीकृत आदिवासी विकास एजेंसी (आईटीडीए) ने उन्हें स्ट्रॉबेरी की खेती करने के लिए प्रेरित किया। अंतत: 10 आदिवासी जोड़े सामूहिक और सहकारी रूप से स्ट्रॉबेरी उगाने के लिए तैयार हो गए।
स्ट्रॉबेरी की खेती थोड़ी देर से शुरू की गई थी और प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों ने भी उनके रास्ते में अनेक अड़चनें पैदा कीं, तो अंदाजा लगाइए, क्या हुआ होगा! और, चौंकाने वाली बात यह है कि यह प्रयोग सफल हो गया!

इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि बाथुडी के आदिवासी दंपत्ति इंदुबती बिस्वाल और चित्रसेन बिस्वाल बहुत खुश हैं। मुख्यमंत्री जनजाति आजीविका मिशन (एमएमजेजेएम) के तहत पिछले साल दिसंबर के आखिर में नौ अन्य आदिवासी दंपत्तियों के साथ मिलकर उन्होंने तीन एकड़ बंजर जमीन पर स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की थी। इस साल फरवरी में फसल तैयार हुई तो उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। नया प्रयोग करने वाले इन किसानों को अप्रत्याशित लाभ हुआ।
इंदुबती बिस्वाल ने The Indian Tribal को बताया, ‘हमने आईटीडीए की ओर से दिए गए स्ट्रॉबेरी के 30,000 पौधे लगाए थे। हालांकि हमारे क्षेत्र में भारी बारिश और ओलावृष्टि ने फलों के उत्पादन में लगभग 10-15 प्रतिशत की कमी कर दी, फिर भी हमारी फसल अच्छी हुई। क्योंकि फसल में फल तो आया। यह अलग बात है कि मौसम की खराबी के कारण नुकसान हुआ। अगर हमने यह खेती अक्टूबर-नवंबर में शुरू की होती, तो उपज बहुत अधिक हो सकती थी।’

उन्होंने कहा, ‘आईटीडीए ने फसल में आई लागत का बड़ा हिस्सा स्वयं वहन किया, लेकिन प्रत्येक दंपत्ति ने भी तीन एकड़ जमीन को स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए उपयुक्त बनाने में लगभग 20,000 रुपये खर्च किए थे।’ हालांकि, उन्हें उम्मीद है कि स्ट्रॉबेरी सीजन के अगले चरण में किसी निवेश की आवश्यकता नहीं होगी और जो फसल होगी, उससे केवल लाभ ही मिलेगा। आईटीडीए ने दो गांवों जुंगा और बालनिपासी के 10 आदिवासी दंपत्तियों को छह एकड़ (एमएमजेजेएम के तहत प्रत्येक गांव में तीन एकड़) में इस खेती को करने के लिए अपनी योजना में शामिल किया था। विभाग का बजट लगभग 40 लाख रुपये था। इसने पिछले साल नवंबर में लाभार्थियों को प्रेरित करना शुरू किया। जब किसान तैयार हो गए तो उन्हें इसी योजना से लाभ उठाने वाले कोरापुट के सफल किसानों से मिलवाया गया और प्रशिक्षित किया गया। इसके बाद इन किसानों ने दिसंबर के महीने में खेती शुरू की।
आईटीडीए (ITDA) के नेतृत्व में किसानों ने ड्रिप सिंचाई, जैविक खाद और पॉलीथिन मल्चिंग का सहारा लिया। ड्रिप सिंचाई के लिए लगभग 70,000 रुपये की लागत से पाइप लगाए गए। सिंचाई के लिए पास की कंझारी नहर से पानी लिया गया। आईटीडीए ने केवल उन आदिवासियों पर ध्यान केंद्रित किया, जिनके अपने खेत थे और उनके करीब सिंचाई के साधन भी थे, क्योंकि स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए हर दिन सिंचाई के लिए 400-500 मिलीलीटर पानी की आवश्यकता होती है। किसानों का चयन करने से पहले उनकी वित्तीय स्थिरता का भी आकलन किया गया, क्योंकि इस फसल में उन्हें भी थोड़ा-बहुत निवेश करना था।



आईटीडीए(ITDA), क्योंझर की परियोजना प्रशासक पूनम राउत ने कहा, ‘स्ट्रॉबेरी की खेती को हमने प्रयोग के तौर पर अपनाया था, लेकिन इसने तो किसानों का जैकपॉट ही खोल दिया। हालांकि यह खेती करने वाले किसानों की संख्या, गांवों और रकबे का निर्धारण राज्य सरकार से फंड की उपलब्धता के आधार पर किया गया।’
आईटीडीए ने ओडिशा उपभोक्ता सहकारी संघ लिमिटेड के माध्यम से महाराष्ट्र से 60,000 पौधे खरीदे थे। प्रत्येक पौधे की कीमत लगभग 40 रुपये थी। चयनित 10 सदस्यों की टीम को 30,000 पौधे दिए गए, जिन्होंने स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए तैयार की गई तीन एकड़ जमीन के अपने हिस्से को छह भूखंडों में विभाजित किया और उसी हिसाब से पौधों का भी बंटवारा कर लिया।
आईटीडीए(ITDA), क्योंझर के परियोजना प्रबंधक सचिदानंद मिश्रा ने कहा, ‘प्रति एकड़ लगभग 2,00,000 से 3,00,000 स्ट्रॉबेरी का उत्पादन हुआ। हमने अपने लाभार्थी किसानों की ओर से जिला मुख्यालय क्योंझरगढ़ में बेचने के लिए 220 ग्राम के डिब्बे तैयार कराए, जिनमें से प्रत्येक को 100 रुपये में बेचने का निर्णय लिया गया। हमने भुवनेश्वर में इन फलों को बेचने की कोशिश की, लेकिन वहां के व्यापारियों और खुदरा विक्रेताओं ने फल को 250 रुपये प्रति किलोग्राम पर खरीदने का अनुरोध किया। इसलिए, हमने भुवनेश्वर में इन्हें बेचने का विचार छोड़ दिया। इसके बाद हमने ‘गोनाशिका फ्रेश’ नाम के ब्रांड के साथ फल बेचने के लिए केवल क्योंझरगढ़ पर ध्यान केंद्रित किया, जिसका हमें काफी फायदा हुआ।