कबीरधाम
वे एके-47 और इंसास जैसी राइफलों के साथ चलते थे। जब भी मौका मिला, उन्होंने इन घातक हथियारों से सुरक्षा बलों पर कहर बरपाया। भय और आतंक का पर्याय बने इन नक्सलियों का छत्तीसगढ़ के सैकड़ों गांवों पर एकछत्र राज चलता था। शीर्ष रैंक वाले इन नक्सलियों के सिर पर भारी इनाम था। ये शासन-प्रशासन के खुले दुश्मन हुआ करते थे। हमेशा सुरक्षा बल उनके निशाने पर रहते थे, लेकिन 38 वर्षीय लिबरू कोरम उर्फ दिवाकर उर्फ किशन तथा 28 वर्षीय मंगलू वेको उर्फ तीजू के लिए यह सब कुछ अब अतीत की बात हो चुकी है।
कुछ साल पहले ही दोनों गोंड आदिवासी युवाओं ने शांतिपूर्ण पारिवारिक जीवन जीने के लिए हथियार त्याग दिए और सुरक्षा बलों के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। कबीरधाम जिले में राज्य सरकार की आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीति के जरिए दोनों युवा समाज की मुख्यधारा में शामिल हो चुके हैं। इस साल मई में लिबरू ने छत्तीसगढ़ राज्य ओपन स्कूल से कक्षा 10 की परीक्षा पास की है। आत्मसमर्पण करने वाले दोनों माओवादियों को इसी साल 16 अगस्त को छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले में ही सिपाही के तौर पर भर्ती किया गया। दोनों को एक साल का पुलिस प्रशिक्षण दिया जाएगा।
लिबरू और वेको दोनों नक्सली संगठन के कान्हा-भोरमदेव (केबी) डिवीजन कमेटी के अंतर्गत माओवादियों के ‘विस्तार प्लाटून’ से जुड़े थे। ‘विस्तार प्लाटून’ का उद्देश्य अपने नवगठित मध्य प्रदेश-महाराष्ट्र-छत्तीसगढ़ (एमएमसी) क्षेत्र में अपनी गतिविधियों को बढ़ाना रहा है।
भोरमदेव क्षेत्र समिति प्रमुख और संभागीय समिति सदस्य (डीवीसीएम) लिबरू के सिर पर शासन की ओर से छत्तीसगढ़ में 8 लाख रुपये और मध्य प्रदेश में 5 लाख रुपये का इनाम घोषित था। कोंडागांव जिले के हाडापार गांव के रहने वाले गोंड आदिवासी लिबरू 2008 में कोंडागांव दलम के सुखराम के माध्यम से माओवादी संगठन में शामिल हुए थे। इसके बाद से उन्होंने इस संगठन में विभिन्न पदों पर काम किया। वह कितने कुख्यात नक्सली बन गए थे, इसका पता इसी से चलता है कि उनके खिलाफ 16 वारंट लंबित थे।
वर्ष 2021 में लिबरू ने एक नक्सली महिला कैडर लक्ष्मी उर्फ देवी से शादी की, लेकिन यहीं से उनकी जिंदगी में बदलाव आने शुरू हो गए और उन्होंने अपनी पत्नी के साथ 2022 में आत्मसमर्पण कर दिया। दिलचस्प बात यह है कि पुलिस ने आत्मसमर्पण के दिन लिबरू से मिली सूचना के बाद भोरमदेव क्षेत्र के बकोदा जंगल में माओवादी डंप से 10 लाख रुपये बरामद किए थे।
लिबरू ने The Indian Tribal के साथ बातचीत में अपनी जिंदगी में आए बदलाव के बारे में मुस्कुराते हुए कहा, ‘मैंने कभी माओवादी वर्दी पहनी हुई थी, लेकिन अब पुलिस की वर्दी मुझे अपने परिवार के प्रति जिम्मेदारी का एहसास कराती है। मैं हमेशा यही बात सोचता रहता हूं कि मुझे अपने परिवार को बेहतर जिंदगी देनी है। जब मैं माओवाद की राह पर था तो मेरी जान को हमेशा खतरा बना रहता था, लेकिन अब मैं अपने परिवार की बेहतरी के लिए अच्छा काम करूंगा।’
खाकी वर्दी पहन कर लिबरू बहुत खुश हैं। पहले और अब की जिंदगी में अंतर के सवाल पर वह कहते हैं, ‘पुलिसकर्मी के तौर पर मुझे हर महीने तयशुदा वेतन मिलेगा, लेकिन इसके उलट जब मैं नक्सली था तो ऐसा कोई प्रावधान नहीं था। दरअसल, नक्सली वर्दी में हमें माओवादी संगठन के लिए सडक़ और तेंदु पत्ता ठेकेदारों और व्यापारियों से लेवी के तौर पर पैसा एकत्र करना पड़ता था।’
बीजापुर के भैरमगढ़ इलाके के केशकुटूर गांव के रहने वाले वेको 2014 में भैरमगढ़ एरिया कमेटी के सचिव चंद्रहाना और अन्य के जरिए प्रतिबंधित नक्सली संगठन में शामिल हुए थे। वेको के सिर पर 2 लाख रुपये का इनाम था। वर्ष 2019 में शादी करने वाले वेको का एक बच्चा भी है। वेको ने अपनी पत्नी राजे उर्फ वनोजा के साथ जून 2020 में कबीरधाम में नक्सलियों का साथ छोड़ते हुए हथियार डाल दिए और आत्मसमर्पण कर दिया। वेको और उनकी पत्नी ने कुछ महीनों पहले कबीरधाम जिले में सुरक्षा बलों के सामने हिड़मे कोवासी उर्फ रनिता (22) नामक शीर्ष महिला नक्सली के आत्मसमर्पण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
रनिता मध्य प्रदेश-महाराष्ट्र-छत्तीसगढ़ (एमएमसी) जोनल कमेटी के तहत गोंदिया-राजनांदगांव-बालाघाट (जीआरबी) के एरिया कमेटी मेंबर (एसीएम) के साथ-साथ प्रतिबंधित माओवादी संगठन के जीआरबी डिवीजन के टांडा/मलंजखंड एरिया कमेटी में सक्रिय थी। छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में उस पर 5-5 लाख रुपये तथा मध्य प्रदेश में 3 लाख रुपये का इनाम था। वह मध्य प्रदेश के बालाघाट में माओवादी हिंसा की 19 और छत्तीसगढ़ के खैरागढ़-छुईखदान-गंडई जिले में हिंसा की तीन घटनाओं में शामिल थी।
कबीरधाम में विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूहों (पीवीटीजी) के स्कूल छोडऩे वाले बच्चों को शिक्षित करने के उद्देश्य से जिला पुलिस अभियान के तहत पति-पत्नी वेको और राजे ने दोबारा अपनी पढ़ाई शुरू की है। दोनों ही एक बेहतर जिंदगी जीना चाहते हैं।
वेको ने The Indian Tribal को बताया, ‘मैं और मेरी पत्नी राजे दोनों ही नक्सली राह छोड़ समाज की मुख्यधारा में आकर बेहद खुश हैं। अब मैं अपनी तीन साल की बेटी के सभी सपने और इच्छाएं पूरी करना चाहता हूं।’ वेको के दो भाई और चार बहनें हैं। परिवार में उनकी मां हैं, लेकिन पिता का साया सिर से उठ चुका है। उनकी मृत्यु 2005 में हो गई।
पुलिसकर्मी के तौर पर भूमिका?
-लिबरू और वेको दोनों ही अब नक्सल विरोधी अभियान चलाने वाले पुलिस बल का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं।
-दोनों सिपाही जिले में सक्रिय माओवादियों के बारे में जानकारी जुटाते हैं और फिर धर-पकड़ अभियान में भी संयुक्त रूप से शामिल रहते हैं।
-वर्ष 2022 में माओवादी सुद्धू हेमला उर्फ करण और उसकी पत्नी अनीता के आत्मसमर्पण में दोनों ने अहम भूमिका निभाई थी। करण के सिर पर 8 लाख रुपये और अनीता पर 5 लाख रुपये का इनाम घोषित था।
-सुरक्षा बलों के साथ सीमाई जिले में मारे गए माओवादियों की पहचान इन दोनों जांबाजों ने ही की थी।
-लिबरू और वेको विधानसभा/लोकसभा चुनाव और विभिन्न वीआईपी दौरों में सुरक्षा की दृष्टि से स्पॉटर/वॉचर की ड्यूटी भी करते हैं।
-नक्सल विरोधी, छापामार और खोजबीन अभियानों के दौरान ड्यूटी पर वे अपने साथ इंसाल राइफल रखते हैं।