रांची
कर्मा पूजा हिंदी वर्ष के भाद्रपद अथवा भादो महीने के 11वें दिन मनाई जाती है, जो आमतौर पर सितंबर-अक्टूबर में पड़ती है। इस साल यह 14 सितंबर को मनाई गई।
क्या है कर्मा पूजा?
कर्मा या कर्म वृक्ष के इर्द-गिर्द घूमते पूजा करने के इस त्योहार को मनाने के बारे में कई मान्यताएं प्रचलित हैं। माना जाता है कि इस दिन युवा और शक्ति का देवता कहे जाने वाले कर्म देवता की पूजा की जाती है। चूंकि लोग कर्म वृक्ष को कर्म देवता का प्रतीक मानते हैं, इसलिए इस वृक्ष की पूजा भी की जाती है। इसके अलावा, कृषि और प्रकृति मां का त्योहार ईमानदारी से किए जाने वाले श्रम का भी प्रतीक है, जिसमें भरपूर फसल और समृद्धि लाने के लिए अन्य प्राकृतिक संसाधनों की पूजा भी की जाती है। इस समय तक बुवाई लगभग पूरी हो चुकी होती है और लोग फसलों पर प्रकृति की कृपा के लिए प्रार्थना करते हैं और कर्म वृक्ष को पूजते हैं। आदिवासी समुदायों में धन की देवी कर्म रानी की पूजा भी की जाती है।
कौन मनाते हैं कर्मा पूजा का त्योहार?
कर्मा पूजा आदिवासियों के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। इसे असम, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में बड़ी ही शिद्दत से मनाया जाता है। अमूमन बैगा, उरांव, बिंझवारी, मुंडा, मझवार, हो, खोरठा और कोरबा आदिवासी इस त्योहार को मनाते हैं। यही नहीं, इसे मनाने के तरीके भी अलग-अलग हैं। जैसे झारखंड में आदिवासी इस दिन प्रकृति की पूजा करते हैं, तो असम जैसे राज्यों में लोग समृद्धि और बेहतर वैवाहिक जीवन के लिए कर्म की पूजा करते हैं। इसके अलावा, यह त्योहार दोस्ती, बहनचारे और भाईचारे, सांस्कृतिक एकता और कल्याण का प्रतीक भी माना जाता है। इसलिए लोग इसे बहुत ही श्रद्धा के साथ मनाते हैं।
क्या-क्या होता है इस दिन?
इस त्योहार को कई अनुष्ठानों का पालन करके मनाया जाता है। कर्म पूजा की तैयारी में एक सप्ताह का समय लगता है। नदी के किनारे से ताजा रेत गांव और हर घर में लाकर रखी जाती है। इसके बाद इसमें सात बीज- चावल, जौ, मक्का, गेहूं, चना, कुल्थी और मसूर बोए जाते हैं। यही नहीं, कर्म वृक्ष की तीन शाखाओं को आंगन की मिट्टी या गांव के अखाड़े या कहें सामुदायिक केंद्र में लगाया जाता है।
ये तीनों शाखाएं त्रिदेवों- ब्रह्मा-विष्णु-महेश तथा आकाश-पृथ्वी-पाताल और भूत-वर्तमान-भविष्य की प्रतीक मानी जाती हैं। इस दिन बहनें अपने भाइयों के लिए लंबी उम्र और समृद्धि के लिए दुआएं मांगती हैं और कर्म वृक्ष की शाखाओं की पूजा करती हैं। बहनें कर्मा गोसाई (देवता) की पूजा करती हैं। भेलवा (सेमेकार्पस एनाकार्डियम या मार्किंग नट ट्री) की शाखाओं को धान के खेतों में फसलों को कीड़ों और अन्य हानिकारक तत्वों से बचाने के लिए डाला जाता है।
कर्मा पूजा का महत्व
कर्मा पूजा के बाद शुभ समय शुरू होता है और इस दौरान लड़कियों की शादी तय की जाती है। माना जाता है कि इससे मित्रता मजबूत होती है। इस त्योहार से जुड़ी एक परंपरा ‘सहिया’ का भी लोग पालन करते हैं। सहिया का अर्थ है दोस्ती और समुदायों के बीच आपसी संबंधों को प्रगाढ़ करना। आदिवासियों में ऐसी मान्यता है कि इस सहिया को मनाने से पीढ़ियों तक दोस्ती कायम रहती है। कर्म पूजा जीत का उत्सव भी कही जाती है। इस बारे में कहा जाता है कि जब आदिवासी लड़ाके युद्ध के दौरान कर्म वृक्ष की घनी पत्तियों के बीच अपने दुश्मनों से बचने के लिए छिप जाते थे और इस तरह स्वयं की रक्षा करते थे या वार कर दुश्मन को परास्त कर देते थे।
उत्सव से जुड़ी मान्यताएं
किवदंती है कि सात भाइयों की पत्नियां हर रोज दोपहर में उनके लिए खेत में खाना लेकर जाती थीं, लेकिन एक दिन वे कर्म देवता की पूजा में ऐसी व्यस्त हुईं कि खाना ले जाना भूल गईं। इससे गुस्सा होकर तीनों भाइयों ने कर्म वृक्ष को उखाड़ फेंका। फिर क्या था, कर्म देवता का प्रकोप सात भाइयों पर पड़ा और वे बहुत जल्द अपना सब कुछ गवां बैठे। यहां तक कि उनके भूखे मरने की नौबत आ गई। कुछ समय बाद उन्हें अपनी भूल का एहसास हुआ और उन्होंने पूरी मान्यता के साथ कर्म वृक्ष की पूजा की। इसके बाद वे पुन: धनधान्य हो गए। एक व्यापारी के साथ भी ऐसी ही मिलती-जुलती कहानी जुड़ी हुई है।
संदेश क्या है?
कर्मा पूजा का सबसे बड़ा संदेश तो यही है कि हर परिस्थिति में पर्यावरण और मां प्रकृति की रक्षा की जानी चाहिए। दूसरे, इससे जुड़े अनुष्ठान दिखाते हैं कि कैसे यह त्योहार प्रकृति को धन्यवाद देता है और समुदायों में परस्पर संबंध मजबूत करता है तथा सुरक्षा का भाव भरता है।
यह केवल कर्म वृक्ष की पूजा करने के बारे में संदेश नहीं देता है, बल्कि यह तो जीवित रहने के लिए प्रकृति पर निर्भर रहने वाले जीवों के साथ-साथ अन्य पेड़- पौधों की रक्षा करने पर जोर देता है। यह भाई-बहनों के रिश्ते को भी मजबूती देता है।