भुवनेश्वर
उनका शरीर सीधा हैं, आंखें बंद हैं और पद्मासन की स्थिति में वह 21 मिनट तक प्राणायाम और अनुलोम-विलोम करती रहीं। संयोग से यह वर्ष 2021 के 21 जून का दिन यानी अंतरराष्ट्रीय योग दिवस था। सुबरनापुर के बंधपाली गांव की गोंड आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली ममता भुए (25) ओडिशा के उन आठ लोगों में शामिल थीं, जिन्होंने 2021 में ऑनलाइन आयोजित सबसे लंबे सामूहिक प्राणायाम महायज्ञ में हिस्सा लेकर विशेष उपलब्धि हासिल की।
अखिल भारतीय योग महासंघ एबीवाईएम (ABYM), जयपुर (राजस्थान) द्वारा आयोजित यह महायज्ञ सबसे लंबे सामूहिक प्राणायाम के रूप में एक विश्व रिकॉर्ड है। एबीवाईएम के राष्ट्रीय अध्यक्ष योग गुरु राकेश भारद्वाज ने The Indian Tribal को फोन पर बताया कि उस महायज्ञ में भारत के 26 राज्यों और 12 देशों के 53,120 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। ममता ने कहा कि इस सामूहिक प्राणायाम महायज्ञ में हिस्सा लेने वाले केआईआईटी-केआईएसएस (KIIT-KISS – कलिंगा इंस्टीट्यूट ऑफ इंडस्ट्रियल टेक्नोलॉजी-कलिंगा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज), भुवनेश्वर से हम आठ लोग थे।
ममता बताती हैं कि वह वनस्पतिशास्त्री (बॉटनिस्ट) बनना चाहती थीं। केआईआईटी-केआईएसएस (KIIT-KISS) में कदम रखने से पहले उसे योग में करियर बनाने के बारे में कभी सोचा भी नहीं था। वह बताती हैं कि एक सुबह उसने केआईआईटी-केआईएसएस (KIIT-KISS) परिसर में योग करने रहे अपने छात्रावास के साथियों के पास एक फाइल देखी। जिज्ञासावश उसने उस फाइल पर एक नजर डाली और इस एक नजर में ही उसे योग से प्यार हो गया। ममता दावा करती हैं कि उन्हें 50 से अधिक आसनों में महारत हासिल है और चार अनाम आसन उन्होंने स्वयं विकसित किए हैं।
ममता योग विशेषज्ञ ही नहीं, एक योग एथलीट के रूप में भी उभर कर आईं। उन्होंने इस साल भुवनेश्वर में पहले जनजातीय खेल महोत्सव (आदिवासी खेल मेगा मीट) के दौरान न केवल स्वर्ण पदक जीता, बल्कि कई राज्य और राष्ट्रीय योग मीट में काफी प्रशंसा बटोरी। अब वह एक सफल योग शिक्षिका हैं और संबलपुर के ग्रामीण इलाकों में ज्यादातर उरांव, मुंडा और संथाल आदिवासी समुदायों के लोगों को योग सिखाना उनका प्रमुख लक्ष्य है।
ममता ने The Indian Tribal से बातचीत में कहा कि जब उन्होंने अपने दोस्तों की सलाह पर छह महीने तक नियमित रूप से योग किया, तो उनकी आंखों की समस्या, माइग्रेन और मासिक धर्म की अनियमितताएं फुर्र हो गईं। यह देख मैंने योग सीखने और सिखाने का निर्णय लेने में बिल्कुल देर नहीं लगाई तथा वनस्पतिशास्त्री बनने का विचार छोड़ दिया। वर्ष 2020 में केआईआईटी-केआईएसएस (KIIT-KISS) में बॉटनी ऑनर्स के साथ स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंंने पोस्ट-ग्रेजुएशन अध्ययन के विषय के रूप में योग विज्ञान ही चुना।
अब वह संबलपुर के कुचिंडा ब्लॉक के कुंतारा सरकारी अस्पताल में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत योग शिक्षिका के रूप में काम कर रही हैं। वह चार स्वास्थ्य उप-केंद्रों के अंतर्गत 20 गांवों में लगभग 300 लोगों को योग सिखा रही हैं। उन्हें 2022 में पोस्ट ग्रेजुएशन करने के फौरन बाद 15000 रुपये प्रतिमाह पर अनुबंध के आधार पर नियुक्त किया गया है।
प्रारंभ में ममता को ग्रामीणों को योग के लिए प्रेरित करने में काफी कठिनाई का सामना करना पड़ा। ग्रामीण उनकी बात तो सुनते थे, लेकिन आंगनवाड़ी केंद्र में उनके किसी भी सत्र में भाग लेने से कतराते थे। हालांकि, आशा (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता), एएनएम (सहायक नर्स और दाइयां) तथा उप-केंद्रों के सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों ने उनके साथ मिलकर काम किया। ममता के नेतृत्व में वे घर-घर गए और लोगों को समझाया। इसके बाद कुछ लोग योग सीखने उनकी कक्षा में आने शुरू हुए। उन्हें इसका फायदा मिला तो देखा-देखी और लोग भी आए। जब उन्होंने देखा कि लोग लंबी बीमारियों से भी इस योग के जरिए छुटकारा पा रहे हैं तो फिर क्या था, उनकी कक्षा में आने वालों का तांता लग गया।
कुचिंदा स्वास्थ्य उपकेंद्र के अंतर्गत गांव चारवती की रहने वाली पूर्णिमा भैंसा की बाईं कलाई मधुमेह के कारण थोड़ी मुड़ गई थी, लेकिन लगभग तीन महीने तक पवनमुक्तासन, सूर्य नमस्कार और ध्यान करने से उनकी कलाई पुन: ठीक हो गई यानी वह वापस अपने सामान्य आकार में आ गई। इसी तरह जमनकिरा-बी के निवासी गणेश अदाबर को उच्च रक्तचाप की बीमारी थी, लेकिन लगातार योग करने से उनका रक्तचाप नियंत्रित हो गया।
हालाकि, ममता की झोली में सफलता और असफलता दोनों का जखीरा है। जब वह केआईआईटी की छात्रा थी, तब 2017 में भुवनेश्वर में अखिल भारतीय अंतर-विश्वविद्यालय योग टूर्नामेंट में असफल हो गई थीं। उन्होंने 2020 में धमाकेदार वापसी की जब वह योग स्पोर्ट एसोसिएशन, भारत द्वारा आयोजित वर्चुअल नेशनल योगासन स्पोर्ट चैंपियनशिप में प्रथम स्थान पर रहीं। अगले वर्ष भुवनेश्वर में राज्य स्तरीय योगासन चैम्पियनशिप में उन्हें दूसरा स्थान प्राप्त हुआ।
वह 2021 में वर्चुअल नेशनल योगासन चैंपियनशिप में फिर असफल रहीं, लेकिन 2022 में अखिल भारतीय अंतर-विश्वविद्यालय योग टूर्नामेंट में उपविजेता रहीं। लेकिन, वह 2022 में कर्नाटक में खेलो इंडिया जंबूरी में अपनी योग्यता साबित नहीं कर सकीं। आखिरकार, उन्होंने 2023 में भुवनेश्वर में पहले राष्ट्रीय स्तर के जनजातीय खेल महोत्सव में स्वर्ण पदक जीता।
ममता की प्रतिभा और संभावनाओं के बारे में केआईआईटी-केआईएसएस के अध्यात्मवाद और योग विज्ञान स्कूल के डीन, योग गुरु संजय पांडा ने कहा कि यदि ममता निरंतर अभ्यास के माध्यम से अपने कौशल को निखारती रहीं, तो वह किसी भी विश्व योग चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीत सकती हैं।
यहां तक कि ममता ने भी नागास्त्रासन जैसे आसन करने में थोड़ी कमजोर होने की बात कबूल की है, जहां हाथ का संतुलन सबसे जरूरी होता है। हालांकि, उन्हें भरोसा है कि वह अगली राष्ट्रीय योग चैम्पियनशिप शुरू होने से पहले अभ्यास के साथ इसे ठीक कर लेंगी।
बंधापाली से लगभग पांच किलोमीटर दूर डुंगरीपाली में राधा कृष्ण गल्र्स हाई स्कूल में मैट्रिक की पढ़ाई के समय से ही ममता का जीवन कठिनाइयों से भरा रहा है। उनका संघर्ष तब और तेज हो गया जब उन्होंने सिंधोल कॉलेज में प्लस-II की पढ़ाई के लिए माटागिनी के एक छात्रावास में रहना शुरू कर दिया। सिंधोल कॉलेज में कक्षाएं लेने के लिए उन्हें मातागनी में अपने छात्रावास से प्रतिदिन 55 किलोमीटर दूर बस से जाना पड़ता था।
वह बताती हैं कि मुझे प्लस-II के दिनों के दौरान मेरे खर्चे पूरे करने के लिए हर महीने लगभग 30,000 रुपयों की आवश्यकता थी। यह वास्तव में मेरे पिता के लिए कठिन था, जिनकी अनियमित वार्षिक आय लगभग रु. 60,000 थी। सौभाग्य से, जब मैंने केआईआईटी-केआईएसएस में रहना शुरू किया, तो मुझे और मेरे पिता को बड़ी राहत मिली, क्योंकि मुझे हास्टल के लिए कुछ भी भुगतान नहीं करना पड़ा था।
ममता के पिता सिकुंडा भुए पेशे से किसान हैं। उनके पास अपने गांव बंधपाली में तीन एकड़ जमीन है। लेकिन, वह इसमें से केवल 1.5 एकड़ पर ही धान की खेती करते हैं, शेष भूमि बहुत ही पथरीली है।
सिकुंडा ने कहा कि मुझे अपना परिवार चलाने के लिए खेतों में काम तक करना पड़ता है। मैं अपनी आय का बड़ा हिस्सा अपनी बेटी ममता की शिक्षा पर खर्च करता था। अगर उसे कुछ अतिरिक्त पैसे की ज़रूरत होती, तो मैं अपने गांव में कई समूहों द्वारा गठित वित्त पूल से दो प्रतिशत ब्याज दर पर ऋण जुटाता था। मैं उन्हें धीरे-धीरे साफ़ करता हूँ जब तक कि मैं अगला खरीद न लूं ।
सिकुंडा के दो बेटे और चार बेटियां हैं। सबसे बड़ा बेटा, जो शादीशुदा है, झारसुगुड़ा में वेदांत एल्युमीनियम के लिए दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करता है, जबकि दूसरा बेटा अपने गांव में फार्महैंड के रूप में काम करता है। उनकी सबसे बड़ी बेटी की शादी हो चुकी है। एक बेटी जिसने दसवीं कक्षा के बाद पढ़ाई बंद कर दी, वह घर के कामों में अपनी मां की मदद करती है।मेरे बेटे कभी-कभी मेरी मदद करते हैं। अब ममता हर दो महीने में 10 हजार रुपये देती हैं। वह मेरी सबसे छोटी बेटी को भी 1200 रुपये देती हैं, जो बंधापाली से लगभग 67 किलोमीटर दूर बीर महाराजपुर में डिग्री कॉलेज में स्नातक कर रही है।