रायपुर
इंद्रावती टाइगर रिजर्व इलाका 2800 वर्ग किमी में फैला है। यह टाइगर रिजर्व शिकार और आगलगी की घटनाओं से निपटने के लिए पिछले एक साल से नए-नए प्रयोग कर रहा है। इसके तहत स्थानीय आदिवासी समुदायों को टाइगर रिजर्व से जोडऩे का प्रयास किया जा रहा है। इसके लिए कुछ गांवों के युवाओं को गश्ती गार्ड के रूप में भर्ती किया गया है। इनमें अधिकांश मुरिया जनजाति से ताल्लुक रखते हैं।
इंद्रावती टाइगर रिजर्व के उप निदेशक धम्मशिल गणवीर कहते हैं कि पिछले साल शुरू की गई पहल के अच्छे परिणाम सामने आ रहे हैं। स्थानीय लोग बड़े शौक से उनके साथ जुड़ रहे हैं। वे वन्य जीवों का प्रबंधन और उनकी सुरक्षा में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं। शुरुआत में ऐसा नहीं था। स्थानीय लोगों को गार्ड के रूप में भर्ती करने से सबसे बड़ा फायदा यह हुआ है कि अवैध शिकार और जंगल में आग लगने की घटनाओं में भी 50 प्रतिशत तक की कमी आई है।
गणवीर ने बताया कि स्थानीय लोगों को गश्ती गार्ड के रूप में भर्ती करने की योजना केंद्र सरकार की है और इसे राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) वित्त पोषित करता है। इंद्रावती टाइगर रिजर्व के 2799.07 वर्ग किमी के कोर और बफर क्षेत्रों में लगभग 56 गांव आते हैं। पिछली जनगणना के अनुसार यहां तीन बाघ हैं। रिजर्व का संवेदनशील बाघ निवास क्षेत्र 1258.37 वर्ग किमी में फैला हुआ है। हालांकि, उग्रवादी घटनाओं के कारण जनगणना कार्य अक्सर प्रभावित हो जाता है।
बीजापुर के भोपाल पटनम तहसील के दमपाया गांव के रहने वाले आदिवासी युवक श्रीनिवास मोडियाम इसी साल एक मार्च को गश्ती गार्ड के रूप में भर्ती हुए थे।
उनकी चयन प्रक्रिया काफी आसान थी। वह बताते हैं कि बीजापुर में एक बैठक या यह कह लें कि साधारण साक्षात्कार आयोजित किया गया। इसमें मुझसे कुछ प्रश्न पूछे गए, जिनका मैंने आसानी से जवाब दिया और अंतत: मेरा चयन गार्ड के तौर पर हो गया। मोडियाम ने 12वीं कक्षा तक पढ़ाई की है और उन्हें 9000 रुपये प्रति माह वेतन पर मिलता है। उन्हें छह बजे ड्यूटी पर पहुंचना होता है, इसलिए सुबह जल्दी उठना पड़ता है। वह ड्यूटी के दौरान रोजाना 10 से 15 किमी पैदल चलते हैं।
उन्होंने बताया कि उनके गांव में बिजली तो है, जिससे मोबाइल आसानी से चार्ज हो जाता है, लेकिन दूर जंगल में जहां जंगली जानवर बहुतायत में रहते हैं, वहां मोबाइल नेटवर्क काम नहीं करता। मोडियाम बताते हैं कि उनके गांव में अधिकांश लोग आजीविका के लिए खेती करते हैं या मौसमी फूल और अन्य लघु वन उपज एकत्र कर बेचते हैं। यहां जंगली सूअर बहुत बड़ी समस्या हैं, जो फसलों को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाते हैं।
शंकर पोट्टम भी एक साल से गश्ती गार्ड के रूप में काम कर रहे हैं। उन्हें जानवरों और उनके पैरों के निशानों की तस्वीरें खींचना और उन्हें इंद्रावती व्हाट्सएप ग्रुप पर साझा करना बहुत अच्छा लगता है।
पोट्टम ने The Indian Tribal को बताया कि गश्त लगाने वाले गार्ड जानवरों के बहुत करीब नहीं जा सकते, क्योंकि ये जानवर उन्हें देखकर भाग जाते हैं। गश्त का सबसे अच्छा फायदा यह हुआ है कि जंगल में आग लगने की घटनाओं में भारी कमी आई है। आग लगने की ज्यादातर घटनाएं गर्मियों में जमीन पर गिरे पेड़ों के सूखे पत्तों के कारण होती हैं। गार्ड ऐसी घटनाओं पर पूरी नजर रखते हैं।
शंकर पोट्टम और श्रीनिवास मोडियाम से इतर प्रह्लाद कुडियम की ड्यूटी थोड़ी सख्त है। उन्हें सुबह छह से 11 बजे और फिर दोपहर दो से शाम पांच बजे तक काम करना पड़ता है। कुडियम पिछले साल दिसंबर से ड्यूटी कर रहे हैं। इस दौरान उन्होंने एक बार बाघ भी देखा है। बाघ से डर के सवाल पर वह बताते हैं कि आमतौर पर दो से तीन लोग साथ गश्त करते हैं, इसलिए डर जैसी कोई बात नहीं। वह नोटकैम ऐप का उपयोग करता है। ड्यूटी का स्थान उसके घर से पांच किलोमीटर है। इसलिए वह आसानी से साइकिल से वहां पहुंच जाता है।
अजय कुडियम भी इस टाइगर रिजर्व में गश्ती हीरो के रूप में कार्य करते हैं। वह बीजापुर के चिन्नाकावली गांव के रहने वाले हैं। कुडियम पहले चौकीदार के तौर भर्ती हुए थे, बाद में वह भी गश्ती गार्ड बन गए। उन्हें भी जानवरों की तस्वीरें खींचने और वीडियो बनाने का काफी शौक है। इसके अलावा मांसाहारी और शाकाहारी दोनों तरह के जीवों पर नजर रखना उनका काम है।हर बीट पर एक गार्ड तैनात होता है।
हममें से कई लोग जंगलों के अंदर ही रहते हैं। हम इस इलाके से भलीभांति परिचति हो गए हैं। यदि जंगली जानवर दिखते हैं तो हम शोर नहीं मचाते, न ही हम डरते हैं। हम उन्हें चुपचाप वहां से गुजरने देते हैं। कभी-कभी जब लोग महुआ संग्रहण के लिए जंगल के अंदर जाते हैं, तो अक्सर उन पर भालू हमला कर देते हैं। पांच साल पहले एक आदमी पर भालू ने उस समय हमला कर दिया था जब वह तेंदू पत्ते एकत्र कर रहा था। सौभाग्य से वह बच गया।