गुवाहाटी
असम में सुदूर नगांव और पश्चिमी कार्बी आंगलोंग की सीमा पर अमसोई क्षेत्र के बालिसोर्डोलोनी गांव की आदिवासी महिलाओं ने यह कर दिखा दिया है कि जल संरक्षण में भी वे किस प्रकार अहम भूमिका निभा सकती हैं। उनकी मेहनत और लगन से गांव के घर-घर पानी पहुंचा ओर आज वहां हर तरफ खुशहाली है।
बात वर्ष 2015 की है। उस समय पूरा गांव स्वच्छ पेयजल के गंभीर संकट से जूझ रहा था। ग्रामीण महिलाओं ने स्वच्छ पानी की आपूर्ति के लिए सभी प्रशासनिक अधिकारियों (पीएचई कार्यालय से लेकर स्थानीय विधायक के कार्यालय तक) चक्कर लगाए, लेकिन कहीं से आश्वासन भी नहीं मिला।
अंतत: गांव की महिलाओं ने एक समूह बनाया और किसी तरह एक जल आपूर्ति योजना (द बालिसोर्डोलोनी पाइप्ड वाटर सप्लाई सिस्टम) को अपने गांव तक लाने में सफल रहीं। योजना गांव के लिए स्वीकृत हो गई।
हालांकि, शुरुआत में यह योजना तकनीकी और प्रशासनिक जाल में उलझने के कारण ठीक से काम नहीं कर सकी, लेकिन 2020 में इस पहल को दुनिया की सबसे बड़ी जल आपूर्ति परियोजना- जल जीवन मिशन में शामिल कर लिया गया और इसका सुखद परिणाम सबके सामने आ गया। गांव के लगभग 150 घरों को स्वच्छ पेयजल मिलने लगा।
देश के पूर्वोत्तर राज्यों में काम करने वाला लोक संस्कृति अनुसंधान केंद्र- एआरएचआई जल जीवन मिशन की कार्यान्वयन सहायता एजेंसी के रूप में कार्य करता है।
एआरएचआई की अध्यक्ष दिब्या ज्योति बोरा ने The Indian Tribal को बताया कि हमने बालिसोर्डोलोनी गांव में जल उपयोगकर्ता समिति बनाने में मदद की और एक समूह बनकर तैयार हो गया, जिसमें सभी सदस्य तिवा और कार्बी जनजातियों की महिलाएं हैं।
यह समिति गांव की जल आपूर्ति के बुनियादी ढांचे की योजना, डिजाइन, कार्यान्वयन, प्रबंधन, संचालन और रखरखाव आदि में विभिन्न समुदायों को शामिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। महिला समिति की सभी सदस्य जल संसाधन प्रबंधन, जल आपूर्ति और गंदे पानी को शोधित कर इसके पुन: उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उठा रही हैं।
जब से इन आदिवासी महिलाओं ने जल आपूर्ति की जिम्मेदारी संभाली है, बालिसोर्डोलोनी गांव में सकारात्मक बदलाव देखने को मिल रहे हैं। आज गांव के सभी घरों तक सुरक्षित और पर्याप्त पेयजल पहुंच रहा है।
बोरा बताती हैं कि कार्यक्रम का प्रबंधन गांव के लोगों पर छोडऩे से यह व्यवस्था विकेंद्रीकत तो हुई ही, स्थानीय समुदाय के बीच भी स्वामित्व की भावना पैदा हुई और लोगों में आपसी विश्वास का माहौल बना है। चूंकि प्रत्येक परिवार को समान जलापूर्ति होती है, इसलिए वे खुशी-खुशी इस सेवा के लिए भुगतान करने को भी तैयार हैं।
जल उपयोगकर्ता समिति की सचिव लक्षिता पटोर कहती हैं कि पहले पूरे गांव को एक ही कुएं पर निर्भर रहना पड़ता था, जिसमें पानी का स्तर लगातार कम होता जा रहा था। गांव के लोग इतने गरीब हैं कि वे स्वयं अपने पैसे से हैंडपंप नहीं लगवा सकते। निजी बोरिंग का खर्च भी कोई ग्रामीण नहीं उठा सकता।
हालांकि, सब कुछ इतना आसान भी नहीं है। आज भी इस योजना के क्रियान्वयन को लेकर महिलाएं चुनौतियों का सामना कर रही हैं। गांव में बार-बार बिजली कटौती होती है, जिस कारण जलापूर्ति बाधित होती है।
महिलाओं ने The Indian Tribal को बताया कि बिजली संकट से निपटने के लिए एक जनरेटर रखा गया है, लेकिन तेल की कमी के कारण यह काम नहीं कर रहा है। बोरा कहती हैं कि अब समिति ने गांव के लोगों से चंदा इकट्ठा कर इस जनरेटर को चालू करने का निर्णय लिया है।
चुनौतियों को किनारे कर दें तो महिलाओं के प्रयास की सार्थकता समझ में आती है। गांव को जल सुरक्षा प्रदान करने में इन आदिवासी महिलाओं ने महती भूमिका निभाई है और इस पहल ने उन्हें काफी सक्रिय और सशक्त बनाया है।
समिति की अध्यक्ष पूर्णेश्वरी सिनारपी का कहना है कि पीने के पानी की कमी का सबसे अधिक खामियाजा हम लोग भुगत रहे थे, क्योंकि घर में हमीं को वे सारे काम करने पड़ते हैं, जिनमें पानी की आवश्यकता होती है।
असम में नगांव जिले के अमसोई गांव में पानी की मांग और आपूर्ति का अंतर बढ़ता जा रहा है। अत्यधिक दोहन के कारण भूजल में कमी हो गई। जलवायु परिवर्तन की वजह से वर्षा अनियमित हो रही है और भूजल में दूषित पदार्थों की मौजूदगी जैसी चुनौतियां बढ़ गई हैं।
आज इन महिलाओं के नेतृत्व वाली इस पहल की ही वजह है कि गांव में जल-जनित बीमारियों की दर बहुत कम है और स्थानीय निवासी भूजल का दोहन नहीं कर रहे हैं, जिससे पानी की कमी का खतरा कम हो गया है।