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Home » द इंडियन ट्राइबल / हिंदी » इस युवा आदिवासी रॉक बैंड ने बदलाव के सुर पकड़े और मचा दी धूम

इस युवा आदिवासी रॉक बैंड ने बदलाव के सुर पकड़े और मचा दी धूम

सीमाई राज्य अरुणाचल प्रदेश में यह बैंड स्थानीय बोलियों एवं लोकधुनों को आधुनिकता का पुट दे रहा है । इस समर्पित संगीतकारों के समूह के प्रमुख किरदार डेविड एंगु से विस्तृत बातचीत की है प्रोयशी बरुआ ने

May 7, 2023
The Indian Tribal

David Angu And Band Performing

ईटानगर

आजकल उत्तर-पूर्व क्षेत्र के रॉक और पॉप बैंड राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगीत समारोहों में खूब सुर्खियां बटोर रहे हैं। ऐसे ही संगीत बैंड में से एक हैं डेविड एंगु एंड द ट्राइब। यह आदिवासी संगीतकारों का बहुत ही लोकप्रिय बैंड है, जो अरुणाचल प्रदेश की स्थानीय बोलियों और लोक धुनों को दुनियाभर में पहुंचाने, अलग पहचान दिलाने की प्रतिबद्धता के साथ काम कर रहा है।

डेविड एंगु एंड द ट्राइब बैंड के मालिक डेविड एंगु ने The Indian Tribal को बताया कि निशि, मिजी, आदि, गैलॉन्ग, वांचो, टैगिन, मिशुई, नोक्टे, आका, तांग्सा और खामती आदि कुछ ऐसी बोलियां हैं, जिनके इर्द-गिर्द हम संगीत रचते और परफॉर्म करते हैं। आजकल लोक संगीत को लोकप्रिय बनाने के लिए फ्यूजन सबसे बड़ा मंत्र है। इसके बिना व्यापक दर्शक वर्ग तक पहुंच बनाना बहुत मुश्किल है।

अरुणाचल प्रदेश की सबसे बड़ी जनजातियों में से एक निशि द्वारा बोलचाल में इस्तेमाल की जाने वाली बोली को निशि कहते हैं। मालूम हो कि मिजी, आदि, गैलोंग, वांचो, टैगिन, नोक्टे, आका, तांग्सा और खमती जनजातियों और इनके द्वारा बोली जाने वाली बोलियों को समान नाम से पुकारा जाता है।

हां, पश्चिम सियांग जिले के लोगों की लंबे समय से चली आ रही मांग पर संसद द्वारा 2011 में गैलोंग बोली का नाम बदलकर गालो किया गया। इसी प्रकार मिश्मी द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली बोली को मिशुई कहते हैं। दरअसल, मिश्मी एक उप-जनजाति है।

यह आदिवासी रॉक बैंड विभिन्न पृष्ठभूमि से आने वाले विशेषज्ञ संगीतकारों के बीच विचार-विमर्श कर अपना संगीत रचता है। इसीलिए ‘फ्यूजन’ इसकी विशेषता है। अनुभवी गिटारिस्ट, संगीतकार और गायक एंगु कहते हैं कि हर संगीत रचना या उसकी परफॉर्मेंस में काफी प्रयोग करने की आवश्यकता होती है। मलतब यह कि संगीत वाद्ययंत्रों का संयोजन, कलाकारों का प्रस्तुति करने का अंदाज, सब कुछ बहुत अलग तरह का यानी अद्वितीय होना चाहिए।

अरुणाचल प्रदेश के एक छोटे से शहर आलो से आने वाले गैलोंग जनजाति के एंगु The Indian Tribal से बातचीत में कहते हैं कि वह हमेशा ही अपनी बोली में कुछ अलग करना चाहते थे। विशेषकर अपनी बोली गालो और रॉक संगीत को लेकर उनका अलग ही सपना था और टकर नबाम, तेजी टोको, निशाम पुल, ताबा सन्नी जैसे कुछ और लोगों से मुलाकात के बाद इस सपने को उड़ान मिल गई।

गिटारवादक नबाम और ढोलक टोको निशि जनजाति से ताल्लुक रखते हैं, जबकि पुल (बास गिटारवादक) और सन्नी क्रमश: मिश्मी और निशि आदिवासी हैं।

एंगु से जब पूछा गया कि संगीत को लेकर अलग तरह से सोचने की प्रेरणा उन्हें कहां से मिली, तो उन्होंने कुछ सोचते हुए बताया कि वह ग्लैम/रॉक मेटल के बहुत बड़े फैन रहे हैं। ये प्रसिद्ध कलाकार बड़े खुश होकर बताते हैं कि संगीतकार के तौर पर शुरुआती दिनों में उनके पास ‘सोल ऑफ फीनिक्स’ नाम की पोशाक भी थी। इस आउटफिट के प्रशंसकों की तादाद लगातार बढ़ती देख प्रतीत हुआ कि मुझे युवाओं और समाज के लिए कुछ योगदान देना चाहिए।

संगीत हमारी परंपराओं को जीवित रखने का एक बेहतरीन तरीका है, क्योंकि यह हमेशा ही बहुत सी लोककथाओं, मिथकों और परंपराओं को आगे बढ़ाने का काम करता है। जाहिर है संगीत में मेरी जान बसती थी। मैंने इसी क्षेत्र में आगे कुछ विशेष करने का निश्चय किया और उसी समय से मैं अपनी सांस्कृतिक जड़ों तथा अपनी बोली को गहराई से समझने का प्रयास कर रहा हूं और इसे संगीत की वर्तमान एवं समकालीन शैली के साथ जोडक़र पेश करता हूं, ताकि युवा वर्ग खुद को इससे अधिक जुड़ाव महसूस कर सकें।

मुझे यह भी लगता है कि यह हमारी परंपराओं को जीवित रखने का एक बेहतरीन तरीका है, क्योंकि संगीत हमेशा ही बहुत सी लोककथाओं, मिथकों और परंपराओं को आगे बढ़ाने का काम करता है।

डेविड एंगु का लाइव परफॉरमेंस

राज्य की लोक संस्कृति का उनके संगीत पर प्रभाव पडऩे के सवाल का विस्तार से जवाब देते हुए एंगु ने कहा कि अरुणाचल प्रदेश विशेष रूप से हमारे तानी बहुल क्षेत्र में पूर्वोत्तर के बाकी हिस्सों की तरह लोक संगीत उतना लोकप्रिय नहीं है। हालांकि, अपने खुद के लोक संगीत से गहरा लगाव होने का श्रेय मैं अपनी दादी को दूंगा, जिनके लिए कभी मैं दहलिया दहलिया जैसी लोक धुनें गुनगुनाया करता था।

वास्तव में, यह धुन उसकी नकल उतारने का एक प्यारा तरीका हुआ करता था। और देखिए, इस तरह नकल उतारने से गुस्सा होने के बजाय वह मुझसे बहुत खुश हुआ करती थीं। वह कहती थीं कि कम से कम मैं अपनी बोली में कुछ तो नकल कर रहा हूं।

अरुणाचल के लोकसंगीत को पूर्वोत्तर महोत्सव, बैंकॉक, जीरो फेस्टिवल ऑफ म्यूजिक, ऑरेंज फेस्टिवल ऑफ एडवेंचर एंड म्यूजिक और बासकॉन के जरिए बाहरी संगीतप्रेमियों तक पहुंचने में मिली है मदद।

आखिरकार, मुझे दादी की बातों के पीछे छिपा मतलब समझ में आ गया। मैंने महसूस किया कि हमारे लोक संगीत को और अधिक विकास एवं प्रचार-प्रसार की आवश्यकता है तथा इसे राज्य के बाहर के दर्शकों तक ले जाना होगा। वह अपने उद्देश्य में काफी हद तक सफल भी रहे हैं। एंगु पूर्वोत्तर महोत्सव, बैंकॉक, जीरो फेस्टिवल ऑफ म्यूजिक, ऑरेंज फेस्टिवल ऑफ एडवेंचर एंड म्यूजिक और बासकॉन में अपनी सफल मंचीय प्रस्तुतियों का जिक्र बड़े गर्व के साथ करते हैं।

आजकल यह आदिवासी रॉक बैंड अरुणाचल प्रदेश के कुछ पारंपरिक वाद्य यंत्रों पर भी हाथ आजमा रहा है। एंगु बताते हैं कि मेरे परिवार वालों के पास कुछ ताल वाद्य यंत्र हैं, जिन पर मैं और अधिक शोध कर उन्हें अपनी आगामी परियोजनाओं में इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहा हूं। उदाहरण के लिए पिछले प्रोजेक्ट में मैं ड्रामायिन को शामिल करना चाहता था, जिसका मुख्य रूप से तवांग और उसके आसपास पश्चिमी बेल्ट के लोगों द्वारा उपयोग किया जाता था। हालांकि, इसके नहीं मिलने के कारण मैंने एक दुईतारा का प्रबंध किया तथा अपनी धुनों में स्थानीयता का पुट देने के लिए इसे बजाया।

अरुणाचल प्रदेश में लोक संगीत की समृद्ध विरासत को आगे बढ़ाने के बारे में एंगु कहते हैं कि आजकल लोक संगीत को लोकप्रिय बनाने के लिए फ्यूजन सबसे बड़ा मंत्र है। इसके बिना व्यापक दर्शक वर्ग तक पहुंच बनाना बहुत मुश्किल है।

एंगु ने बताया कि मुझे यह कहने में बिल्कुल हिचक नहीं है कि अरुणाचल के लोक संगीत में फ्यूजन लाने के लिए ‘ओमक कोमुट कलेक्टिव’ जैसे बैंड ने सबसे पहले कदम बढ़ाया। उन्होंने ही मुझे भी इस दिशा में आगे बढ़ कर काम करने के लिए बहुत प्रेरित किया।

एंगु कहते हैं कि लोक संगीत हमेशा से एक मौखिक परंपरा रही है। प्रत्येक जनजाति की अपनी अलग शैली और अलग भाव होता है, जो नृत्य, संगीत और पूजा-प्रार्थना के माध्यम से पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ता चला आ रहा है। मैं तो केवल डेविड एंगु एंड द ट्राइब के माध्यम से युवाओं में इन लोक धुनों को गहराई से जानने की रुचि पैदा करने के लिए छोटा सा योगदान दे रहा हूं।

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The Indian Tribal is India’s first bilingual (English & Hindi) digital journalistic venture dedicated exclusively to the Scheduled Tribes. The ambitious, game-changer initiative is brought to you by Madtri Ventures Pvt Ltd (www.madtri.com). From the North East to Gujarat, from Kerala to Jammu and Kashmir — our seasoned journalists bring to the fore life stories from the backyards of the tribal, indigenous communities comprising 10.45 crore members and constituting 8.6 percent of India’s population as per Census 2011. Unsung Adivasi achievers, their lip-smacking cuisines, ancient medicinal systems, centuries-old unique games and sports, ageless arts and crafts, timeless music and traditional musical instruments, we cover the Scheduled Tribes community like never-before, of course, without losing sight of the ailments, shortcomings and negatives like domestic abuse, alcoholism and malnourishment among others plaguing them. Know the unknown, lesser-known tribal life as we bring reader-engaging stories of Adivasis of India.

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