झारखंड के आदिवासी खिलाड़ियों विशेषकर लड़कियों ने कई खेलों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना और राज्य का नाम रोशन किया है। उनमें से कई कमजोर पृष्ठभूमि वाले परिवारों और अभावग्रस्त क्षेत्रों से आते हैं। खिलाड़ी देश के किसी भी हिस्से का हो, अधिकांश को अपने खेल के सामान से लेकर फिटनेस तक पर खासी रकम खर्च करनी पड़ती है। लेकिन झारखंड जैसे राज्य में, जहाँ कुपोषण और गरीबी एक बड़ी समस्या है, फिटनेस चिंता का विषय नहीं रहा है।
फिर यहां के आदिवासी खिलाड़ी ऐसा क्या खाते हैं, जो उन्हें हमेशा ऊर्जावान बनाए रखता है? इसका उत्तर है, झारखंड के आदिवासी खिलाड़ी आमतौर पर यहां उपलब्ध खाद्य वनस्पतियों पर ही निर्भर रहते हैं, जिनमें प्रोटीन, विटामिन और खनिज सामग्री प्रचुर मात्रा में होती है। अमूमन ये देखा गया है कि ये किसी विशेष फिटनेस रेजिमेन को नहीं फॉलो करते हैं। सिर्फ आदिवासी खिलाड़ी ही नहीं, ज़्यदातर स्थानीय आदिवासी लोग भी साधारणतयः शारीरिक रूप से मजबूत होते हैं।
देखें तो क्या हैं झारखंड की सब्जियां और वनस्पति:
रगरा करी
झारखंड में रगरा और खुखरा ऐसी ही स्थानीय सब्जियां हैं, जिनमें प्रोटीन और खनिज भरपूर मात्रा में पाया जाता है। इनमें कैलोरी भी बहुत अधिक होती है। यह स्वाद में मशरूम की तरह होती है और बरसात के मौसम में बहुतायत में पाई जाती है।
बच्चे और बड़े दोनों ही शरीर में प्रोटीन, विटामिन और खनिज सामग्री की पूर्ति के लिए सामान्य रूप से स्थानीय खाद्य वनस्पतियों एवं सब्जियों पर ही अधिक निर्भर रहते हैं।
देश के दूसरे हिस्सों की अपेक्षा इस आदिवासी राज्य में दूध का उत्पादन कम है। ऐसे में बच्चे और बड़े दोनों ही शरीर में प्रोटीन, विटामिन और खनिज सामग्री की पूर्ति के लिए सामान्य रूप से स्थानीय खाद्य वनस्पतियों एवं सब्जियों पर ही अधिक निर्भर रहते हैं। ये वनस्पतियां एवं सब्जियां शरीर में रोग प्रतिरक्षा बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
रोसेले या गोंगुरा फूल
राज्य में रोसेले अथवा गोंगुरा के फूल से बने कुद्रुम शोरबा, कुल्थी दाल यानी होर्स ग्राम, मूंगा-मसूर दाल करी दुबी, स्वादिष्ट चकोर झोर, अरक रस्सी, चावल स्टार्च, टमाटर और स्प्रिंग प्याज का शोरबा ऐसे व्यंजन हैं, जो स्वादिष्ट सूप का काम करते हैं और पाचन व स्वास्थ्य के लिहाज से बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं। कटहल तियान की स्वादिष्ट सब्जी, तीखी अमजा, हॉग प्लम से बना अचार भी यहां खूब खाया जाता है।
जिल पिठा
आदिवासी क्षेत्रों विशेषकर झारखंड में भाप से खाना पकाने की विधि बहुत लोकप्रिय है। इस तरीके से पका खाना स्वादिष्ट तो होता ही है, इसके पोषक तत्व भी बने रहते हैं। होकू लाक इसी प्रकार पारंपरिक रूप से भाप से पकाया हुआ जायकेदार व्यंजन होता है, जो पोथिया मछली को मथकर बनाया जाता है।
जिल पिठा चावल के आटे और उसमें उबले हुए चिकन को भरकर तैयार किया जाता है। यह एक प्रकार का मोमो होता है, जिसे साल के पत्ते में लपेटकर भाप पर पकाया जाता है। खस्सी मास अथवा मटन को यहां विशेष रूप से मिट्टी के बर्तन में लकड़ी की आंच पर कुछ ऊपर रखकर पकाया जाता है। जब यह तैयार हो जाता है तो इसमें अन्य मसालों के साथ हल्की- हल्की धुएं की गंध आती है, जो इसे बहुत ही स्वादिष्ट बना देती है।
खस्सी मांस अथवा मटन को यहां विशेष रूप से मिट्टी के बर्तन में लकड़ी की आंच पर कुछ ऊपर रखकर पकाया जाता है। अन्य मसालों के साथ इसमें हल्की-हल्की धुएं की गंध आती है, जो इसे बहुत ही स्वादिष्ट बना देती है।
यहां एक प्रकार की चिकन बिरयानी भी खूब लोकप्रिय है, जिसे आदिवासी क्षेत्रों में जिल सुरा कहा जाता है। इसे चावल की बीयर या हड़िया के साथ पकाया जाता है। यह आदिवासियों का प्रमुख पारंपरिक पेय है। इसे पकाने के लिए इसमें चावल के साथ-साथ लगभग 20 से 25 प्रकार की जड़ी-बूटियां डाली जाती हैं और पूरे मिश्रण को खमीर उठाने के लिए एक या दो सप्ताह तक छोड़ दिया जाता है।
सामान्य रूप से उपलब्ध देशी शराब की तुलना में हड़िया में अल्कोहल की मात्रा कुछ कम होती है। स्वाद एवं पौष्टिकता बढ़ाने के लिए आदिवासी लोग खाना पकाते समय इसे अवश्य डालते हैं।
लाल चाय (बिना दूध की चाय) भी आदिवासियों का सुरक्षित और स्वादिष्ट पेय है, जो हर घर में पसंद किया जाता है। पाचन के लिए यह पेय बहुत ही अच्छा माना जाता है।