पूर्वोत्तर में सुदूर मनोरम राज्य मिज़ोरम का खेलों के प्रति प्रेम देशभर में प्रसिद्ध है। राज्य के लोगों की दिनचर्या का हिस्सा होते हैं यहां खेल। तभी तो वर्ष 2020 में इस राज्य ने खेलों को ‘उद्योग’ का दर्जा दे दिया। ऐसा करने वाला यह भारत का पहला और एकमात्र राज्य बन गया।
राज्य के खेल मंत्री रॉबर्ट रोमाविया रॉयटे ने खेलों को उद्योग का दर्जा देते समय संवाददाताओं से कहा था कि यह एक ऐतिहासिक फैसला है, क्योंकि किसी अन्य राज्य को ऐसा करते हुए अभी तक नहीं सुना गया है।
मिज़ोरम यूं तो फ़ुटबॉल का शौकीन है और इसके अपने लीग हैं, लेकिन इनबुआन कुश्ती जैसे स्वदेशी खेलों को बढ़ावा देने के प्रयास भी साथ-साथ चल रहे हैं। इनबुआन कुश्ती खेलते समय ऐसा प्रतीत होता है जैसे रणभूमि में दो यौद्धा युद्ध लड़ रहे हों।
ऐसा माना जाता है कि इनबुआन कुश्ती की शुरुआत 1750 में हुई थी। मिज़ो जनजातियों के बर्मा से आकर यहां बसने के बाद इसे एक खेल के रूप में व्यस्थित रूप से खेला जाने लगा। यह भी कहा जाता है कि इस मनोरंजक खेल का आविष्कार डंगटलैंड गांव में हुआ था। दरअसल, यह ताकत का खेल है। कहावत है कि जब भी गांव में कोई नया अपरिचित आदमी आता तो उसे उस गांव के सबसे ताकतवर पुरुष के खिलाफ कुश्ती लडक़र अपनी ताकत का खुला प्रदर्शन करना पड़ता था।
गांवों में बेहद लोकप्रिय यह कुश्ती खेल 16 फीट के अखाड़े में आयोजित किया जाता है। इसका सख्त नियम यह है कि इसमें पहलवान घुटनों को नहीं मोड़ सकता और न ही अपने सामने मौजूद खिलाड़ी को लात मार सकता है। खिलाड़ी को कमर के चारों ओर पहने जाने वाले कपड़े की बेल्ट से पकडक़र अपने प्रतिद्वंद्वी को पैरों से ऊपर उठाना पड़ता है।
यदि कोई पहलवान किसी भी नियम का उल्लंघन करता है या उसकी कमर की बेल्ट ढीली हो जाती है, तो उसे अयोग्य घोषित कर दिया जाता है। रिंग में मौजूद दोनों पहलवानों को आम तौर पर आधे से एक मिनट के तीन राउंड खेलने की अनुमति होती है।
हाथ और पैरों की ताकत के बल पर पूरे कौशल का प्रदर्शन करते हुए तेज गति से जो खिलाड़ी अपने सामने वाले पहलवान को जमीन से ऊपर उठा लेता है, उसे विजेता घोषित कर दिया जाता है। एक पहलवान ने बताया कि पैरों का उपयोग करने का उद्देश्य खिलाड़ी के पैरों या पैरों की पकड़ को ढीला करना होता है, लेकिन लात मारना पूरी तरह वर्जित होता है। पहलवान अपने साथ खेलने वाले खिलाड़ी को इस छोटे से रिंग से बाहर भी नहीं धकेल सकता। यह खेल तब तक जारी रहता है जब तक कि कोई खिलाड़ी दबाव में आकर नियम न तोड़ दे या दूसरे पहलवान को पैर सहित जमीन न उठा दे।
पहले गांव के लडक़े इसे रात में शौक के तौर पर खेलते थे, लेकिन बाद में इसे औपचारिक खेल का दर्जा मिल गया। अब इसे देखने के लिए बड़ी भीड़ जुटती है और बाकायदा ईनामी प्रतियोगिताएं होती हैं।