यह कहना उचित ही होगा कि प्रकृति के प्रति जुड़ाव परिवार से ही आता है। बेहद सामान्य आदिवासी परिवार से आने वाली इंफाल की कृषि उद्यमी जी युमन को कम उम्र से ही यह पता चल गया था कि वह आगे चलकर पर्यावरण से जुड़े किसी क्षेत्र में ही काम करेंगी।
उनकी उपलब्धियां पर्यावरण से सामान्य तौर पर लगाव की तुलना में कहीं अधिक हैं। कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल से वानिकी में प्रथम श्रेणी में मास्टर डिग्री हासिल करने वाली युमन ने माइक्रो कंपोस्टिंग का उपयोग कर रसोई के कचरे को जैविक खाद में बदलने का अपनी तरह का पहला उत्पाद ग्रीन बकेट बनाने का बीड़ा उठाया है।
युमन ने ग्रीन बायोटेक इको सॉल्यूशंस की स्थापना की है। यह कंपनी जैव उर्वरकों और जैव कीटनाशकों से संबंधित उत्पाद बनाती है तथा पूरे उत्तर-पूर्व में विभिन्न चाय बागान समूहों, गैर सरकारी संगठनों, किसानों और स्वयं सहायता समूहों को प्रौद्योगिकी और खेती से संबंधित सेवाएं प्रदान करती है।
युमन, जिन्होंने अब तक 4,500 किसानों को सलाह दी है, ने ग्रीन बायोटेक इको सॉल्यूशंस की भी स्थापना की है, जो जैव उर्वरकों और जैव कीटनाशकों से संबंधित है
युमन कहती हैं कि जैविक खेती के विकास और इसे फायदे का सौदा बनाने के लिए किसानों को स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र के हिसाब से इसकी तकनीक और लाभ के बारे में शिक्षित करने की आवश्यकता है।
इसी के साथ इसमें सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय कारक भी शामिल हैं। इस दिशा में वह मणिपुर में 2012 से प्रयासरत हैं और किसानों को मुफ्त परामर्श सेवाएं प्रदान कर रही हैं।
युमन ने ग्रीन बायोटेक इको सॉल्यूशंस की स्थापना की है। यह कंपनी जैव उर्वरकों और जैव कीटनाशकों से संबंधित उत्पाद बनाती है तथा पूरेउत्तर-पूर्व में विभिन्न चाय बागान समूहों, गैर सरकारी संगठनों, किसानों और स्वयं सहायता समूहों को प्रौद्योगिकी और खेती से संबंधित सेवाएं प्रदान करती है।
अब तक वह 4,500 किसानों को ऑर्गेनिक खेती के बारे में सलाह-मशविरा दे चुकी हैं।