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Home » द इंडियन ट्राइबल / हिंदी » द इंडियन ट्राइबल / खान-पान » कहिए, क्या खाना पसंद करेंगे

कहिए, क्या खाना पसंद करेंगे

गुजरात की समृद्ध आदिवासी संस्कृति में अलग- अलग तरह के अनूठे स्वाद चखने को मिल जाएंगे। खाने की जितनी वैरायटी यहां के आदिवासी समाज की थाली में सजी मिलेंगी, इतनी गुजरात में दूसरी जगहों या देश के अन्य हिस्सों में कहीं नहीं मिल पाएंगी। मयूरी दवे पेश कर रही हैं यहां के जायके

November 7, 2021
स्टेचू ऑफ़ यूनिटी, गुजरात

स्टेचू ऑफ़ यूनिटी, गुजरात

गेहूं के बिना भोजन? यह शहरी भारत में उन अधिकांश लोगों को लासा मुक्त आहार की तरह लग सकता है, जिनके लिए गेहूं का आटा दैनिक खाने का अभिन्न हिस्सा है, लेकिन गुजरात के आदिवासी समाज की थाली का यह आकर्षक पहलू है।

आदिवासी लोगों की खाने की आदतें बड़ी अनूठी होती हैं। वे प्रकृति के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़े होते हैं। उनके व्यंजन भी आसपास के क्षेत्र में आसानी से उपलब्ध सामग्री से तैयार किए जाते हैं।

गुजरात के ट्राइबल रिसर्च एंड ट्रेनिंग सोसाइटी के शोध अधिकारी देवचंद वहोनिया कहते हैं कि व्यंजनों के आधार पर राज्य की आदिवासी बेल्ट को तीन क्षेत्रों में बांटा जा सकता है। उत्तर में यह राजस्थान की सीमा के पास अंबाजी से दाहोद तक फैला है। मध्य प्रदेश की सीमा से लगता दाहोद जिला मध्य क्षेत्र में आता है इसके बाद महाराष्ट्र की सीमा के पास दक्षिण गुजरात का डांग जिला है।

वहोनिया कहते हैं कि उत्तर और मध्य गुजरात की शुष्क जलवायु का प्रभाव यहां के आदिवासी लोगों के व्यंजनों में स्पष्ट झलकता है। भरपूर पानी वाले दक्षिण गुजरात क्षेत्र में आदिवासी समुदायों द्वारा तैयार किए जाने वाले खाने अन्य दो क्षेत्रों से बिल्कुल अलग होते हैं। दाहोद की एक जनजाति से ताल्लुक रखने वाले वाहोनिया कहते हैं कि आदिवासी थाली सीधे उनकी खेती से जुड़ी होती है।

Mahua Oil
महुआ तेल

गर्मियों के दौरान उत्तर और मध्य गुजरात में आदिवासी लोग खाना पकाने में महुआ तेल (मधुका लोंगिफोलिया) का उपयोग करते हैं। इससे उनके भोजन में विशिष्ट स्वाद आ जाता है। मानसून और सर्दियों में वे खाना पकाने में स्थानीय स्तर पर खूब उपलब्ध तिल और मूंगफली का तेल इस्तेमाल करते हैं। उत्तरी क्षेत्र में रहने वाले आदिवासियों की थाली में मौसमी सब्जियां, मसालेदार उड़द या चने की दाल और नरम पीली मक्का की मोटी रोटी होती है। शाम को आदिवासी लोग उबालने के बाद कुचलकर तैयार किया गया मक्का का हल्का खाना और ताजा दूध लेते हैं।

मध्य क्षेत्र के व्यंजन भी कुछ-कुछ ऐसे ही होते हैं, लेकिन वे रोटी में सफेद मक्का का उपयोग करते हैं। दाहोद में आदिवासी लोग दाल-पनिया खाते हैं। पनिया सफेद मक्का के आटे से पाव या ब्रेड की तरह बनती है। इसे मसालेदार उड़द या चना दाल के साथ गर्मागर्म परोसा जाता है।

गुजरात और देश के अन्य हिस्सों के विपरीत आदिवासी लोग गेहूं नहीं खाते हैं। गुजराती आदिवासी व्यंजनों में गेहूं का कोई स्थान नहीं है। दक्षिण क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी लोगों की थाली में अधिक वस्तुएं होती हैं। यहां धान और बांस प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होता है। वहोनिया कहते हैं कि चावल के आटे से बनी रोटी, चटपटी उड़द या चना दाल, बांस के पौधे की सब्जी और इसी का अचार बड़ा स्वादिष्ट लगता है।

Gujarati Tribal Thali | Gujrat Tribal Culture

सरदार सरोवर बांध के पास वल्लभभाई पटेल की मूर्ति स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के करीब एकता नर्सरी में पर्यटकों को आदिवासी थाली परोसी जाती है अपना छोटा सा होटल चलाने वाली आदिवासी महिला स्वयं सहायता समूह की सदस्य शिलाबेन तड़वी कहती हैं कि यहां की थाली में पारंपरिक गुजराती खाने के साथ आदिवासी व्यंजनों जैसे नागली पापड़ और रोटलो (रोटी), बांस का अचार और मक्का की रोटी भी शामिल होती है।

डांग जिले के अमधा गांव के आदिवासी मुखिया महेश मणिलाल कहते हैं कि उड़द की दाल के साथ नागली या रागी रोटलो यहां लोकप्रिय आदिवासी खाना है आदिवासी लोग नागली से पापड़ भी बनाते हैं। यदि यहां के प्रसिद्ध डांगी व्यंजनों का स्वाद नहीं चखा तो गुजरात के एकमात्र हिल स्टेशन सापुतारा की यात्रा अधूरी ही मानी जाती है।

अपना भोजनालय चलाने वाली आदिवासी महिला स्वयं सहायता समूह की सदस्य शिलाबेन तड़वी कहती हैं कि यह थाली पारंपरिक गुजराती खाने के साथ आदिवासी व्यंजन नागली पापड़ और रोटलो, बांस अचार तथा मकाई रोटलो की मिली-जुली डिश है।

विशेष अवसरों पर आदिवासी लोग मटन, चिकन और मछली भी खाते हैं। अधिकांश मांसाहारी भोजन भी उसी तरह तैयार किया जाता है जैसे शाकाहारी। गुजरात में बहुत से लोग विशेष रूप से आदिवासी क्षेत्रों में मसालेदार मटका चिकन खाने के लिए जाते हैं। यह चिकन आमतौर पर टेराकोटा के बर्तन में अलाव पर पकाया जाता है, जो बहुत ही स्वादिष्ट लगता है।

Hibiscus Sharbat

शिलाबेन कहती हैं कि हिबिस्कस फूल, शहद और नींबू से तैयार आदिवासी शर्बत स्थानीय और विदेशी पर्यटकों के बीच बहुत लोकप्रिय है।

यहां का एक और लोकप्रिय पेय है महुआ फूल से बनी देशी शराब। आदिवासी संस्कृति में जन्मदिन समारोह से लेकर मृत्यु भोज तक में यह शराब विशेष तौर पर परोसी जाती है।

खाना पकाने में इस्तेमाल होने वाला महुआ तेल गुजरात के आदिवासी समुदायों के लिए घी का बेहतरीन विकल्प है। दिवाली के मौके पर महुआ तेल के दीये ही जलाए जाते हैं। आदिवासियों के धार्मिक अनुष्ठान भी इस तेल के बिना नहीं होते। अंतिम क्रिया के दौरान दाह संस्कार के लिए घी के बजाय महुआ तेल का ही उपयोग किया जाता है।

यदि प्रकृति के साथ लोगों का घनिष्ठ संबंध देखना है तो गुजरात की आदिवासी थाली पर नजर डाल लीजिए। यह आज भी लोगों के प्रकृति से जुड़ाव का जीता-जागता उदाहरण है।

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झारखण्ड: लुगुबुरू घांटाबाड़ी धोरोमगाढ़ राजकीय महोत्सव 2025 का हुआ शुभारंभ

प्रकृति की गोद में बसे बोकारो जिले के गोमिया प्रखंड के ललपनिया के पवित्र स्थल लुगुबुरू घांटाबाड़ी धोरोमगाढ़ में सोमवार सुबह को राजकीय महोत्सव 2025 का शुभारंभ पारंपरिक विधि-विधान और भक्तिपूर्ण माहौल में हुआ। पहले ही दिन दस हजार से अधिक श्रद्धालु लुगु पहाड़ पर चढ़कर लुगुबाबा के दर्शन के लिए पहुंचे।सूर्योदय के साथ ही श्रद्धालु पारंपरिक वेशभूषा में गीत-संगीत गाते हुए आस्था की राह पर आगे बढ़ते दिखाई दिए। भक्तों ने कहा, "लुगुबाबा हमारे पुरखों की आत्मा हैं, हमारी धरती और हमारे धर्म के रक्षक। यहां आकर मन को शांति और आत्मा को शक्ति मिलती है।" लुगुबुरू महोत्सव केवल पूजा का पर्व नहीं, बल्कि यह झारखंड की आदिवासी अस्मिता, लोक संस्कृति और सामूहिक एकता का जीवंत उत्सव है। यहां सांताली और अन्य जनजातीय समाजों के लोग अपने पारंपरिक परिधानों में नृत्य और गीतों के माध्यम से अपनी संस्कृति की झलक प्रस्तुत कर रहे हैं। महोत्सव का लाइव प्रसारण jhargov.tv, YouTube और Facebook पर किया जा रहा है। लुगुबुरू घांटाबाड़ी धोरोमगाढ़ सांताली समाज का पवित्रतम तीर्थ स्थल माना जाता है। यहां प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु एकत्र होकर धरती, जल, जंगल और जन के इस पवित्र रिश्ते का उत्सव मनाते हैं। यह पर्व झारखंड की उस आत्मा को अभिव्यक्त करता है, जिसमें प्रकृति ही ईश्वर है, और लुगुबाबा उसका साकार स्वरूप।
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कभी जिन हाथी गलियारों का नाम सुनते ही डर महसूस होता था, आज वही रास्ते विकास की पहचान बन गए हैं — बरिहा आदिवासी अब दुनिया को अपने बीच आमंत्रित कर रहे हैं। The Indian Tribal की रिपोर्ट

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The Indian Tribal is India’s first bilingual (English & Hindi) digital journalistic venture dedicated exclusively to the Scheduled Tribes. The ambitious, game-changer initiative is brought to you by Madtri Ventures Pvt Ltd (www.madtri.com). From the North East to Gujarat, from Kerala to Jammu and Kashmir — our seasoned journalists bring to the fore life stories from the backyards of the tribal, indigenous communities comprising 10.45 crore members and constituting 8.6 percent of India’s population as per Census 2011. Unsung Adivasi achievers, their lip-smacking cuisines, ancient medicinal systems, centuries-old unique games and sports, ageless arts and crafts, timeless music and traditional musical instruments, we cover the Scheduled Tribes community like never-before, of course, without losing sight of the ailments, shortcomings and negatives like domestic abuse, alcoholism and malnourishment among others plaguing them. Know the unknown, lesser-known tribal life as we bring reader-engaging stories of Adivasis of India.

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