सबसे पहले बात स्टेज या अखाड़े की
यहां अखाड़ा वह स्थान है, जहां सामुदायिक मामलों, समारोहों के साथ अन्य कार्यक्रम आयोजित होते हैं। रांची विश्वविद्यालय में आदिवासी भाषा विभाग के पूर्व प्रमुख डॉ. गिरिधारी राम गौंझू ने 2020 में इस रिपोर्टर को बताया था कि अखाड़े गांव के बीचों-बीच स्थित होते हैं। डॉ. गौंझू का इसी साल अप्रैल में दिल का दौरा पडऩे से निधन हो गया।
प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. गौंझू ने उस समय बताया था कि इन अखाड़ों में देर रात तक कार्यक्रम होते हैं। “लोग आधी रात तक वहीं जमे रहते हैं। कार्यक्रम खत्म होने के बाद जो लडक़े-लड़कियां किन्हीं कारणों से रात में घर नहीं जा पाते, उनके ठहरने का इंतजाम यहीं अखाड़े में अलग-अलग होता है।” हालांकि डॉ. गौंझू ने इस बात पर दुख भी जताया कि आधुनिक जमाने में अखाड़े अतिक्रमण का
शिकार हो रहे हैं।
अखाड़े हमेशा से ग्रामीण सांस्कृतिक आदान-प्रदान का प्रमुख केंद्र रहे हैं। गायन, नृत्य और खेलकूद कार्यक्रमों के आयोजन यहीं होते हैं। इसके अलावा, यहां हर शाम ग्रामीण गांव की साझा और व्यक्तिगत समस्याओं पर चर्चा करने के लिए एकत्र होते हैं।
प्रसिद्ध लोक कलाकार और पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित मुकुंद नायक कहते हैं कि “अखाड़े विभिन्न धर्मों के लोगों को एकजुट करने और गांव में सामाजिक सद्भाव बनाए रखने में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।”
वाद्ययंत्र और परिवेश
झारखंड में लोग विभिन्न प्रकार के संगीत वाद्ययंत्रों का प्रयोग करते हैं। इनमें नागरा, ढोलक, धमसा, धाग, ताशा, मंदर, बांसुरी, मुरली, जोरा मुरली, मोहन बांसुरी, तिरियो, शहनाई, शंख, सिंगा, तुरी, नरसिंगा, ताहिला, सारंगी, इकतारा, दोतारा, तेंतारा, तांबेरा, गोपियांत्र, घुंघरू, घुंघरा, गोरोमा और केंद्र आदि प्रमुख रूप से बजाए जाते हैं। ये सभी बांसुरी, ताल, घंटी और तार वाले वाद्ययंत्रों के अलग अलग रूप हैं।
झारखंड के लोक संगीत किताब के लेखक डॉ. गौंझू के अनुसार विशेष रूप से मोहन बांसुरी, केंद्र और तिरियो जैसे संगीत वाद्ययंत्र विलुप्त होने के कगार पर हैं। आजकल विशेषज्ञ कलाकारों की कमी के कारण इन वाद्ययंत्रों की धुन बहुत ही कम सुनने को मिलती है। हालांकि अपनी परंपराओं को पुनर्जीवित करने के लिए इन्हें सहेजने के कुछ प्रयास जरूर किए गए हैं। यहां मंदर अभी भी सबसे मधुर संगीत वाद्ययंत्र है।
परंपराओं से लगाव कम हो जाने और वाद्ययंत्रों के पुराने पड़ जाने के बावजूद गांवों में इनकी धुन आज भी सुनी जा सकती है।
और फिर आता है संगीत… (अगले लेख में )