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Home » द इंडियन ट्राइबल / हिंदी » द इंडियन ट्राइबल / कानूनी » गलत अनुवाद से गहराया संकट

गलत अनुवाद से गहराया संकट

कैसे एक शब्द का गलत अनुवाद अनुसूचित जनजाति होने और न होने का सवाल खड़ा कर सकता है, बता रही हैं मृतिका जैन

September 6, 2021
Supreme Court

Supreme Court of India

अदालत के पास किसी समानार्थी शब्द को अनुसूची में निर्दिष्ट जनजातियों के समकक्ष घोषित करने की कोई शक्ति नहीं है।

एक रोचक मामला बिहार के नित्यानंद शर्मा का है, जिसमें शीर्ष अदालत ने गलत अनुवाद के कारण गड़बड़ी होना माना। राज्य सेवा में सहायक शिक्षक शर्मा ने खुद को बिहार में एक मान्यता प्राप्त अनुसूचित जनजाति लोहार से संबंधित बताते हुए एसटी आरक्षण के तहत पदोन्नति की मांग की। उन्हें इसका लाभ नहीं दिया गया। वह उच्च न्यायालय चले गए, लेकिन राहत नहीं मिली। कोर्ट ने 12 अगस्त, 1993 को उनकी याचिका खारिज कर दी।

यह मामला दोतरफा आधार पर सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा। एक आधार था कि लोहार अनुसूचित जनजाति है, जैसा कि अनुसूची के हिंदी संस्करण में उल्लेख किया गया है और दूसरा आधार अदालत द्वारा शंभू नाथ बनाम बिहार राज्य, 1990 में स्थापित मिसाल को बनाया गया।

हालांकि, राज्य सरकार के वकील ने इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि अधिनियम में अंग्रेजी और हिंदी संस्करणों में लोहारा/लोहरा को अनुसूचित जनजाति के रूप में दर्ज किया गया है जबकि लोहार को केवल हिंदी संस्करण में अनुसूचित जनजाति के रूप में वर्णित किया गया है। यह गलत अनुवाद का परिणाम है।

इसके बाद 2 फरवरी, 1996 को सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए शर्मा की अपील खारिज कर दी कि अदालत के पास समानार्थी शब्द को अनुसूची में निर्दिष्ट जनजातियों के समकक्ष घोषित करने या किसी जनजाति को शामिल करने या बदलने का कोई अधिकार नहीं है।

अदालत ने यह भी कहा कि अनुवादित संस्करण से यह पता चलता है कि समुदाय लोहार का लोहारा या लोहरा शब्द के लिए गलत तरीके से अनुवाद कर अनुसूची में शामिल दिखाया गया।

In Numbers

672
Sub-Districts each have a Scheduled Tribes population of more than 10,000
Adivasi quite literally means ‘earliest inhabitant,’ but their fate, lives and welfare too often rest heavily on modern readings and interpretations of law. “The State shall promote with special care the educational and economic interests of… in particular, the scheduled castes and the scheduled tribes, and shall protect them from social injustice and all forms of exploitation,” says Article 46 of the Constitution, which, along with Articles 341, 342, 16(4) and 335, delineates the treatment of SC/STs. Over the years, several government orders, amendments and legal precedents have built a path for the Adivasi to be brought into the mainstream.
आदिवासी का शाब्दिक अर्थ है इस धरती पर सबसे पुराने निवासी, लेकिन उनका भाग्य, रोजमर्रा की जिंदगी और सामाजिक कल्याण आधुनिक व्यवस्था तथा कानून की व्याख्या पर निर्भर करता है।

संविधान के अनुच्छेद 46 में कहा गया है कि राज्य अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की शिक्षा और आर्थिक हितों को विशेष ख्याल रखते हुए बढ़ावा देगा और उन्हें हर प्रकार के सामाजिक अन्याय और शोषण से बचाएगा। इसी के साथ अनुच्छेद 341, 342, 16(4) और 335 में भी अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के साथ बर्ताव को स्पष्ट किया गया है।

वर्षों से कई प्रकार के सरकारी आदेशों, संशोधनों और कानूनी फैसलों ने आदिवासियों को मुख्यधारा में लाने का मार्ग प्रशस्त किया है।
लगभग तीन दशकों तक चली मुकदमेबाजी के बाद अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिए पदोन्नति में आरक्षण जैसे मुद्दों पर कुछ ऐतिहासिक निर्णय आए हैं। इसकी शुरुआत 1992 में ऐतिहासिक इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ के फैसले से हुई थी, जिसे कई बार उलटा गया और फिर बहाल किया गया।

वर्ष 1997 के समता फैसला भी अनुसूचित जनजाति के लिए दूरगामी परिणाम पडऩे वाला रहा है। इसमें अनुसूचित जनजातीय क्षेत्रों में खनन के लिए दिशा-निर्देश निर्धारित किए गए हैं। ऐसा माना जाता है कि खनन उद्योग ने आदिवासियों की सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और कानूनी स्थिति में व्यापक बदलाव किया है।

दूसरी ओर, समय-समय पर अदालतों ने भी आदिवासी हितों के मद्देनजर सख्त टिप्पणियां दी हैं। पिछले साल अगस्त में ही एक शीर्ष पीठ ने कहा था कि संविधान निर्माताओं ने कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण पर स्थायी तौर पर विचार नहीं किया। अदालतों न केवल कानूनी, बल्कि सबके लिए समानता के नैतिक पहलुओं पर भी गौर किया है। हालांकि यह कानूनी राय अभी बनी हुई है कि आधुनिकता अनुसूचित जनजातियों के हितों पर अतिक्रमण कर रही है। अदालतों द्वारा कुछ ऐसे रोचक फैसले भी पारित किए गए हैं, जो खास चर्चित तो नहीं हुए, लेकिन उन्होंने जनजातीय विकास पर सीधा प्रभाव डाला है।

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The Indian Tribal is India’s first bilingual (English & Hindi) digital journalistic venture dedicated exclusively to the Scheduled Tribes. The ambitious, game-changer initiative is brought to you by Madtri Ventures Pvt Ltd (www.madtri.com). From the North East to Gujarat, from Kerala to Jammu and Kashmir — our seasoned journalists bring to the fore life stories from the backyards of the tribal, indigenous communities comprising 10.45 crore members and constituting 8.6 percent of India’s population as per Census 2011. Unsung Adivasi achievers, their lip-smacking cuisines, ancient medicinal systems, centuries-old unique games and sports, ageless arts and crafts, timeless music and traditional musical instruments, we cover the Scheduled Tribes community like never-before, of course, without losing sight of the ailments, shortcomings and negatives like domestic abuse, alcoholism and malnourishment among others plaguing them. Know the unknown, lesser-known tribal life as we bring reader-engaging stories of Adivasis of India.

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