रांची
उरांव जनजाति की 30 वर्षीय डॉ पार्वती तिर्की को हिंदी भाषा के साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार-2025 के लिए चयनित किया गया है। साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार-2025 की घोषणा बुधवार को नयी दिल्ली में की गई। अकादमी के अध्यक्ष माधव कौशिक की अध्यक्षता में साहित्य अकादमी के कार्यकारी मंडल की बैठक में यह निर्णय लिया गया। अकादमी ने देश भर के कुल 23 लेखकों को 23 भाषाओँ में उनकी साहित्यिक रचनाओं के लिए इस युवा पुरस्कार के लिए चयन किया।
रांची विश्वविद्यलय के अंतर्गत राम लखन सिंह यादव कॉलेज के हिंदी विभाग की सहायक प्राध्यापक डॉ तिर्की को यह पुरस्कार उनके हिंदी काव्य संग्रह – ‘फिर उगना’ के लिए दिया गया है। कुडुखभाषी डॉ तिर्की के इस हिंदी काव्य संग्रह में लगभग 60 कविताएं हैं जो जनजातीय जीवन और संस्कृति, उनके मुद्दे और लोकजीवन को दर्शाती है। यह संग्रह हिंदी और कुड़ुख के बीच संवाद भी स्थापित करती हुयी दिखाई पड़ती है। हिंदी के साथ कुड़ुख शब्दावली का भी इन कविताओं में बखूबी इस्तेमाल किया गया है।
डॉ तिर्की कहती हैं कि उन्होंने इतना बड़ा सम्मान पाने की सिर्फ कल्पना की थी, जो अब सच साबित हुई। वह बताती है कि ‘फिर उगना’ न सिर्फ कविता पुनर्जीवन की बात करती है अपितु यह संदेश भी देती है कि अपनी पहचान के लिए अपनी जड़ों तक जाना जरूरी है। डॉ तिर्की ने आगे बताया कि उनके लिए इस वर्ष इस पुरस्कार का मिलना इसलिए भी ख़ास है क्यूंकि इसी साल वो परिणय सूत्र में भी बंधी है। उनके पति योगेंद्र उरांव सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं और सैमसंग रिसर्च इंस्टीट्यूट, नोएडा में कार्यरत हैं। योगेंद्र उनको साहित्य लेखन के लिए प्रेरित करते रहते हैं। पुरस्कार स्वरूप उन्हें एक उत्तकीर्ण ताम्र फलक और 50,000 रुपये की पुरस्कार राशि एक विशेष समारोह में प्रदान की जाएगी।
ख़ास बात ये है कि डॉ तिर्की की कोई पारिवारिक साहत्यिक पृष्ठभूमि नहीं है। उनके पिता सुकरा उरांव पेयजल एवं स्वच्छता विभाग, झारखण्ड सरकार से प्रधान लिपिक के पद से सेवानिवृत्त हुए और मां फूलमणि उरांव गृहिणी हैं। डॉ तिर्की की 12वीं तक की स्कूली शिक्षा जवाहर नवोदय विद्यालय, गुमला से हुई। इसके बाद स्नातक, स्नातकोत्तर और पीएचडी तक की पढ़ाई उन्होंने बीएचयू वाराणसी से की है। बीएचयू में हिंदी अध्ययन के दौरान उन्होंने लिखना शुरू किया और वहीँ से ये सिलसिला चल पड़ा। उनकी कई कहानियां विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छपी हैं पर ‘फिर उगना’ उनकी पहली प्रकाशित पुस्तक है। डॉ तिर्की वर्ष 2022 में बैकलॉग नियुक्ति से रामलखन यादव कॉलेज के हिंदी विभाग विभाग में सहायक प्राध्यापक नियुक्त हुईं।
ज्ञात हो कि इससे पहले वर्ष 2022 में भी एक युवा आदिवासी लेखिका ने ये पुरस्कार प्राप्त किया था। जमशेदपुर के निकट परसुडीह बारिगोरा गांव की रहने वाली सालगे हांसदा को उनके पहले ही उपन्यास के लिए साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार 2022 प्रदान किया गया था। उपन्यास जनम दिसोम उजारोग काना (वीरान होती मातृभूमि) संथाली भाषा में लिखा गया है और ग्रामीण-शहरी परिवेश में गहराती खाई और शहरीकरण के कारण मची सामाजिक उथल-पुथल पर आधारित है। हांसदा तब 32 साल की थी।