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Home » द इंडियन ट्राइबल / हिंदी » विविध » अलसी उत्पादन का हब बना कोरापुट

अलसी उत्पादन का हब बना कोरापुट

उच्च पोषण, औषधीय और व्यावसायिक दृष्टि से बहुमूल्य अलसी ओडिशा के हजारों आदिवासी किसानों की आजीविका का सहारा बन गई है। सरकार जिस तरह बाजरा मिशन के तहत बाजरे की खेती को बढ़ावा दे रही है, यदि उसी प्रकार अलसी पर भी ध्यान दे तो यहां के किसानों की किस्मत बदल जाए। निरोज रंजन मिश्र की रिपोर्ट

February 12, 2024
अलसी की फसल

अलसी की फसल

भुवनेश्वर

ओडिशा के कोरापुट जिले के डुम्ब्रीगुडा गांव के गदाबा आदिवासी किसान हरि तातापडिय़ा (35) अपनी झोपड़ी के पिछले वाले हिस्से में पांच बैलों की जोड़ी से दायें (बंगाला) जोडक़र अलसी की सूखी फसल को पारंपरिक तरीके से थ्रैसिंग कर रहे हैं। वह जूट की मोटी रस्सी से बंधे अपने पांचों बैलों पर जोर-जोर से चिल्लाकर उन्हें तेज चलने का संकेत दे रहे हैं। बैल बिना रुके लगातार चल रहे हैं। इस तरह बैलों के पंजों का दबाव पडऩे से फसल के डंठल में लगे फल से अलसी के बीज जिन्हें अलसी ही कहा जाता है, झर-झर निकल रहे हैं।

जब फसल पूरी तरह मसली जाएगी या थ्रैस हो जाएगी तो हरि प्राकृतिक हवा अथवा बिजली के पंखों के सामने छाज के माध्यम से इसे उड़ाएंगे और इस तरह हवा के दबाव से डंठल और पत्तों का कबाड़ उड़ कर आगे चला जाएगा और बीज वहीं गिर कर अलग हो जाएंगे। इस तरह पूरी फसल साफ हो जाएगी जिसे हरि तातापडिय़ा लगभग 60 रुपये प्रति किलो के हिसाब से व्यापारी को बेच देंगे। इसमें से कुछ हिस्सा वह अपने इस्तेमाल यानी इसमें से तेल निकालने के लिए और कुछ किलो अगले साल बोने के लिए घर में रख लेंगे।

हरि कहते हैं, ‘हमारे गांव डुम्ब्रीगुडा में लगभग 35 घर हैं, जिनमें से आठ किसान लगभग 15 एकड़ में अलसी की खेती करते हैं। वह स्वयं भी 1.5 एकड़ में अलसी बोते हैं। इससे उन्हें हर साल लगभग 20,000 रुपये की आमदनी होती है। वह ढाई एकड़ में धान और बाजरा भी उगाते हैं, जिससे उन्हें लगभग 30,000 रुपये की आय हो जाती है। इस तरह वह वार्षिक स्तर पर 50,000 रुपये कमा लेते हैं।’

कोरापुट किसान संघ (केएफए) के सचिव शरत कुमार पटनायक के अनुसार, ‘लक्ष्मीपुर, पोट्टांगी, कोरापुट, कोरापुट, नारायणपटना, सेमिलिगुडा और कोरापुट के नंदपुर जैसे ब्लॉकों के अंतर्गत आने वाले 500 से अधिक गांवों में परजा, कोंध, गदाबा, भूमिया समेत कई अन्य जनजातियों के 6000 से अधिक किसान लगभग 8000 हेक्टेयर भूमि में अलसी की खेती करते हैं।’ 

पटनायक कहते हैं, ‘अलसी अगस्त-सितंबर में उस समय बोई जाती है जब बरसात का उतार होता है और नवंबर-दिसंबर में जाड़ों की शुरुआत में फसल तैयार हो जाती है। अत्यधिक गर्मी या बरसात के सीजन में इसे नहीं उगाया जा सकता।’ उन्होंने कहा, ‘अलसी की फसल उगाने के लिए उपयुक्त तापमान 10 सेल्सियस से 30 सेल्सियस के बीच होना चाहिए, जबकि वार्षिक वर्षा 700 मिमी से 750 मिमी के बीच होनी चाहिए।’

Tribal Farmers
अलसी के बीज की किस्में

ओडिशा के अलसी हब के रूप में विख्यात हो चुके कोरापुट जिले के किसान अलसी की कई स्वदेशी किस्में बोते हैं। इनमें कई तो ऐसी हैं, जिन्हें अभी भी पहचानना, सूचीबद्ध और नामांकित किया जाना बाकी है। हालांकि, जिले के सुनाबेड़ा कस्बे में ओडिशा केंद्रीय विश्वविद्यालय (सीयूओ) के जैव विविधता और प्राकृतिक विज्ञान विभाग (डीबीएनएस) ने अलसी की 30 स्वदेशी किस्मों को एकत्र किया है, जो एस्टेरसिया परिवार से संबंधित हैं।

डीबीएसएन के सहायक प्रोफेसर डॉ. देवब्रत पांडा कहते हैं, ‘सन 2020 में शुरू हुए हमारे अध्ययन के दौरान हमने अब तक 120 से अधिक किसानों से बातचीत कर अलसी की 30 स्वदेशी किस्मों की पहचान की है। हालांकि, अभी कुछ और किस्में भी हो सकती हैं, जिन्हें हम अपने शोध के लिए ढूंढने का प्रयास करेंगे। 

भुवनेश्वर स्थित ओडिशा कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (ओयूएटी) ने दो और उन्नत किस्में जारी की हैं। ओयूएटी की उन्नत किस्में देवमाली और उत्कल नाइजर क्रमश: 1992 और 2008 के आसपास जारी की गई थीं।

ओयूएटी के अखिल भारतीय समन्वित नाइजर अनुसंधान परियोजना, सुनाबेडा के प्रभारी अधिकारी, वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. सुमंत साहू ने कहा, ‘ओयूएटी की ओर से जारी की जाने वाली तीसरी उन्नत किस्म अभी प्रस्तावित चरण में है। हम जल्द ही इस बारे में कुछ खुलासा करेंगे।’ 

डॉ. देवब्रत पांडा ने कहा, ‘अलसी फाइबर, ओमेगा-3 फैटी एसिड, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन केआई, विटामिन सी, एंटीऑक्सिडेंट मैग्नीशियम, पोटेशियम, जस्ता और अन्य पोषक तत्वों से भरपूर होती है। मंगरडोरा, गंजीपदर और कोलाबनगर जैसी स्वदेशी किस्में फ्लेवोनोइड,  विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट क्षमता से भरपूर हैं। पोषण की दृष्टि से ये बेहद उन्नत किस्में हैं।’

Tribal Farmers
अलसी के फूल खिले हुए

कोरापुट के सेमिलिगुडा में ओयूएटी के रीजनल रिसर्च ट्रांसफर स्टेशन के एसोसिएट डायरेक्टर डॉ. परसुराम सियाल ने कहा, ‘अलसी हृदय रोग, मधुमेह और कैंसर के खतरे को कम करती है। इसके सेवन से खराब कोलेस्ट्रॉल भी नियंत्रित हो जाता है।’

डीबीएसएन के अध्ययन के अनुसार, अलसी की कई स्वदेशी किस्मों में वसा की मात्रा बहुत अधिक होती है। डॉ. पांडा ने बताया कि सकुरबंदा और सैतीपदर जैसी देशी किस्मों में वसा की मात्रा उनके संबंधित वजन का लगभग 41 और 42 प्रतिशत तक होती है, जबकि देवमाली और उत्कल नाइजर में वसा की मात्रा क्रमश: 30 और 31 प्रतिशत होती है।

कोरापुट ब्लॉक के अंतर्गत कोलाब नगर गांव के किसान केशब जही ने कहा, ‘अलसी का तेल 300 से 400 रुपये प्रति लीटर बिकता है, जबकि इसकी खली या पिडिया 30 से 40 रुपये प्रति किलोग्राम बिक जाती है।’ खली का उपयोग पक्षियों और मवेशियों के चारे के रूप में भी किया जाता है।

केएफए सचिव शरत के अनुसार, अलसी के पोषण, औषधीय और व्यावसायिक गुणों को देखते हुए सरकार को इसकी खेती और मार्केटिंग पर ध्यान देना चाहिए, जैसा कि वह अपने बाजरा मिशन के तहत बाजरे की फसल के लिए करती है। शरत ने कहा, ‘हमने कई बार अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति विकास और पिछड़ा वर्ग विभाग की एकीकृत जनजातीय विकास एजेंसी (आईटीडीए), मिशन शक्ति विभाग के ओडिशा आजीविका मिशन (ओएलएम), और पंचायती राज विभाग के ओडिशा ग्रामीण विकास विपणन सोसायटी (ओआरएमएएस) से इस संबंध में कदम उठाने का अनुरोध किया, लेकिन अभी तक स्पष्ट रूप से कुछ नहीं किया गया है।’

अलसी उत्पादन
अलसी उत्पादन

आईटीडीए, कोरापुट के परियोजना प्रशासक सौम्य सार्थक मिश्र और ओएलएम, कोरापुट के परियोजना प्रबंधक प्रियंबदा बिसोई ने यह स्वीकार किया कि उनकी संस्थाओं के पास अभी तक अलसी की खेती को बढ़ावा देने और इसकी मार्केटिंग के लिए कोई योजना नहीं है। हालांकि, ओआरएमएएस, कोरापुट के उप मुख्य कार्यकारी अधिकारी, रोशन कार्तिक ने यह जरूर बताया कि उनके संगठन की स्वयं सहायता समूहों के सहयोग से इस वर्ष अलसी के लड्डू और तेल तैयार करने की योजना है।

कार्तिक ने कहा, ‘हमने कृषि-ऊष्मायन केंद्र स्थापित करने के लिए मार्चिमल के पास लगभग पांच एकड़ जमीन ली है। इस केंद्र में न केवल अलसी के लड्डू और तेल, बल्कि हल्दी पाउडर और साबुन जैसी दैनिक उपयोग की चीजें बनाई जाएंगी। यह संयंत्र ग्रेडिंग, पैकेजिंग और तेल निकालने वाली मशीनों से सुसज्जित होगा। इसके लिए कुल बजट लागत 1.5 करोड़ रुपये में से करीब 20 लाख रुपये अलग रखे गए हैं।’ 

ओआरएमएएस की योजना अभी पाइपलाइन में ही है, लेकिन इससे पहले ही कोरापुट के जेयपोर शहर में स्टार्ट-अप जगन्नाथ मिलेट हब (जेएमएच) ने पहले ही अलसी के लड्डू, केक और कुकीज जैसी चीजें बनाना शुरू कर दिया है। जेएमएच अभी प्रयोग के तौर पर ही काम कर रहा है।जेएमएच के निदेशक जगन्नाथ चिनरी ने कहा, ‘पिछले साल हमने प्रयोग के तौर पर ही लाल रंग की अलसी से पांच किलो लड्डू और तीन किलो कुकीज तैयार की थीं। इन्हें बाजार में 400 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचा गया। इसी से उत्साहित होकर हमने इन उत्पादों का व्यवसाय आगे बढ़ाना शुरू किया किया है। इसके अलावा, हम अलसी का तेल भी निकालेंगे।

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The Indian Tribal is India’s first bilingual (English & Hindi) digital journalistic venture dedicated exclusively to the Scheduled Tribes. The ambitious, game-changer initiative is brought to you by Madtri Ventures Pvt Ltd (www.madtri.com). From the North East to Gujarat, from Kerala to Jammu and Kashmir — our seasoned journalists bring to the fore life stories from the backyards of the tribal, indigenous communities comprising 10.45 crore members and constituting 8.6 percent of India’s population as per Census 2011. Unsung Adivasi achievers, their lip-smacking cuisines, ancient medicinal systems, centuries-old unique games and sports, ageless arts and crafts, timeless music and traditional musical instruments, we cover the Scheduled Tribes community like never-before, of course, without losing sight of the ailments, shortcomings and negatives like domestic abuse, alcoholism and malnourishment among others plaguing them. Know the unknown, lesser-known tribal life as we bring reader-engaging stories of Adivasis of India.

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